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SUNDER KAND सुंदरकाण्ड सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं.तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं .हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले . हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ? हनुमान जी की सुरसा से मिलना देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी से कहने लगे कि आज देवताओं ने मुझे भोजन दिया है . हनुमान जी कहने लगे कि,मैं पहले श्रीराम का कार्य करके आऊ और उसके बाद सीता जी की खबर श्री राम को सुना दूं तो मुझे खा लेना.मैं सत्य कहता हूं. लेकिन उसने हनुमान जी को जाने नहीं दिया . उसने अपना मुंह योजन भर फैलाया. हनुमान जी ने अपने शरीर को दुगना कर लिया . उसने अपना मुख सोलह योजन फैलाया तो हनुमान जी बत्तीस योजन के हो गए . जैसे-जैसे सुरसा मुंह बढ़ाती गई हनुमान जी दुगना हो गए .जब उसने अपना मुख सौ योजन किया तो हनुमान जी बहुत छोटे हो गए .सुरसा के मुख से होकर बाहर आए और उनसे विदा मांगी . सुरसा ने कहा कि तुम बल बुद्धि के भंडार हो . तुम श्रीराम का कार्य अवश्य करोगे .वह हनुमान जी को आशीर्वाद देकर चली गई. समुंदर में एक राक्षसी रहती थी जो माया से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की परछाई पकड़ लेती थी . जिसे वो उड़ नहीं पाते थे और वह उन जीवो को खा लेती . उसमें वही कपट हनुमान जी के साथ किया . हनुमान जी ने उसे मार दिया और समंदर पार किया.हनुमान जी का लंका में प्रवेश और लंका के द्वार पर राक्षसी से मिलनावहाँ पहुँच कर हनुमान जी ने सुंदर वन की शोभा देखी . सामने विशाल पर्वत देखकर हनुमान जी भय त्याग कर उस पर चढ़ गए और उन्होंने लंका देखी .बहुत ही बड़ा किला है चारो और समुद्र है और सोने के परकोटे का प्रकाश हो रहा है . नगर के रखवालों को देखकर हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा सा रूप धारण किया और लंका में चले गए.लंका नामक राक्षसी जो लंका के द्वार पर रहती थी.वह राक्षसी हनुमान जी से कहने लगी कि कहां जा रहा है ? हनुमान जी ने उसे घुसा मारा तो उसे खून की उल्टी होने लगी . वह संभल कर कहने लगी कि,ब्रह्मा जी ने जब रावण को वरदान दिया था तो ,"मुझसे कहा था कि जब तुम किसी वानर के मारने से तुम व्याकुल हो जाओ तो समझ लेना कि राक्षसों का संघार होने वाला है ". मेरे बड़े पुण्य हैं जो मैं आपके दर्शन कर पाई.हनुमान जी ने लघु रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया . हनुमान जी ने एक एक महल में सीता जी को खोजा . रावण के महल में भी उन्हें जानकी जी दिखाई नहीं दी . हनुमान जी और विभिषण मिलनहनुमान जी को एक महल दिखा ,जिस पर उन्हें श्री राम के आयुध (धनुष बाण) के चिंह और तुलसी के वृक्ष दिखे . हनुमान जी कहने लगे लंका तो राक्षसों का निवास है लेकिन यहां पर सज्जन पुरुष का निवास कैसे ?उसी समय विभीषण जी जागे . हनुमान जी ने साधु का रूप धारण किया. विभिषण जी ने उनकी कुशलक्षेम पूछा . विभिषण जी ने पूछा कि ब्राह्मण देव क्या आप हरि भक्त हैं ? या फिर दीनों पर दया करने वाले स्वयं रामजी हैं . तब हनुमान जी ने श्री राम जी की सारी कथा कहीं और अपना नाम बताया .विभीषण कहने लगे कि ,"मैं यहां वैसे ही रहता हूं जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है ", मेरा तामसी (राक्षस) शरीर है. लेकिन मन में श्रीराम के लिए अनुराग है . इसलिए मुझे लगता है कि प्रभु श्रीराम की कृपा के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं .हनुमान जी कहने लगे कि,"मैं कौन सा कुलीन हूं"? मैं चंचल वानर हूं . प्रभु श्री राम ने ही मुझ अधम पर कृपा की है . विभिषण ने माता जानकी कैसे लंका में रहती है ? वह सब कथा हनुमान जी से कहीं . विभिषण जी ने युक्तियां बताई कि किस तरह हनुमान जी सीता जी के दर्शन कर सकते हैं ? हनुमान जी ने फिर मसक के समान रूप बना लिया और अशोक वाटिका में यहाँ सीता जी रहती थी वहां चले गए. हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता जी को देखनासीता जी को देखकर हनुमान जी ने मन में उन्हें प्रणाम किया . सीता जी मन ही मन श्री रघुनाथ का स्मरण करती रहती हैं . जानकी जी को दीन देख कर हनुमान जी को बड़ा दुख हुआ . हनुमान जी सोच रहे हैं ऐसा क्या करें जिससे मां जानकी का दुख कम हो जाए .रावण का सीता माता को धमकानाउसी समय रावण सज धज कर वहां आया और सीता जी को समझाने लगा के मंदोदरी आदि रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा . तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही . जानकी जी तिनके की ओट करके कहने लगी कि, "तू छल से मुझे हर लाया है , तुझे लाज नहीं आती ". सीता जी के कठोर वचन सुनकर रावण गुस्से से बोला . रावण कहने लगा कि या तो मेरी बात मान ले, नहीं तो मैं तुझे काट डालूंगा . लेकिन मय दानव की पुत्री मंदोदरी (रावण की पत्नी) ने नीति कहकर रावण को समझाया . रावण ने राक्षसियों को सीता जी को भय दिखाने को कहा . रावण सीता जी से कहने लगा कि, " अगर एक महीने में मेरा कहा ना माना तो मैं इसे तलवार से मार डालूंगा ".रावण के जाते ही राक्षसियां सीता जी को भय दिखाने लगी . तभी त्रिजटा नाम की राक्षसी जिसे श्री राम के चरणों में अनुराग का था. वह कहने लगे कि, "मैंने सपने में देखा कि एक वानर ने लंका जलाई . राक्षसों की सेना मारी गई और रावण दक्षिण दिशा (यमपुरी) की ओर जा रहा है . लंका मानो विभिषण को मिल गई. श्री राम ने सीता को बुला भेजा है . यह सुन कर राक्षसियां डर गई और सीता जी के चरणों में गिर गई. सीता जी सोच रही है एक महीने समाप्त होने पर रावण मुझे मार डालेगा . सीता जी त्रिजटा से कहने लगी कि कोई ऐसा उपाय करो कि मैं अपना शरीर त्याग सकूं .रावण की शूल के समान कष्ट देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती . त्रिजटा ने सीता जी को बहुत प्रकार समझाया. हनुमान जी का माता सीता को श्री राम की अंगूठी और संदेश देनासीता जी को बिरह से व्याकुल देखकर हनुमान जी का एक क्षण कल्प सामान बीत रहा है . तब हनुमान जी ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी . सीताजी ने हर्षित होकर अंगूठी को उठा लिया . सीता जी सोचने लगी कि रघुनाथ तो अजय हैं. माया से अंगूठी बनाई नहीं जा सकती .उसी समय हनुमान जी श्री राम के गुणों का वर्णन करने लगे . जिसे सुनकर सीताजी का दुख दूर हो गया . सीता जी कहने लगी कि जिसने भी यह कथा सुनाई है वह प्रकट क्यों नहीं होता ? जब हनुमान जी सीता जी के निकट चले गए . उन्हें देखकर जीता जी मुंह फेर कर बैठ गई . क्योंकि उन्हें आश्चर्य था नर और वानर संग कैसे हो सकते हैं ? हनुमान जी फिर पूरी कथा सुनाई. जिसे सुन कर सीता जी को विश्वास हो गया कि जय श्री राम का दास है . सीता जी ने श्री राम लक्ष्मण जी का कुशल मंगल पूछा . सीता जी कहने लगे कि, "क्या रघुनाथ मुझे याद करते हैं " ?सीता जी कहती हैं कि हे नाथ ! आपने मुझे क्यों भुला दिया ? सीता जी के विरह वचन सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि, " माता श्री राम के हृदय में आप से दूना प्रेम हैं ".अब श्री रघुनाथ का संदेश सुनो . श्री राम ने कहा है कि तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं . मेघ मानो खोलता हुआ तेल बरसा रही हो . मन का दुख कहने से कम हो जाता है . पर कहूं किससे ? समझ लो कि मेरा मन सदा तेरे पास ही रहता है. प्रभु श्री राम के वचन सुनकर जानकी जी प्रेम मग्न हो गई. हनुमान जी कहने लगे कि माता प्रभु श्री राम ने आपकी खबर पाई होती तो प्रभु विलंब नहीं करते . लेकिन अब आप राक्षसों को जला ही जाने.हे माता मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर मुझे श्री राम की आज्ञा नहीं है . कुछ दिन और धीरज धरो . श्रीराम वानरों सहित जहां अवश्य आएंगे .हनुमान जी का सीता माता का संदेह दूर करने के लिए विशाल रुप प्रकट करना सीता जी कहने लगी कि,"क्या सब वानर तुम्हारे ही समान हैं "? राक्षस तो बहुत बलवान योद्धा है .सीता जी के मन में संदेह देखकर हनुमान जी ने विशाल शरीर प्रकट किया. जिसे देखकर जीता जी के मन में विश्वास हो गया . हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया .हनुमान जी कहने लगे प्रभु के प्रताप से छोटा सा सर्प भी बड़े से गरुड़ को खा सकता है . हनुमान जी की वाणी सुनकर सीताजी को संतोष हुआ . सीता जी कहा कि हे पुत्र तुम अजर ,अमर और गुणों का खजाना हो जाओ . हनुमान जी ने कहा माता आपका आशीर्वाद अमोघ हैं .हनुमान जी का अशोक वाटिका उजाड़नाहनुमान जी ने सीता जी से मीठे फल खाने की अनुमति मांगी . हनुमान जी ने कुछ फल खा कर बाग उजाड़ने लगे . बहुत से योद्धा रखवालों को उन्होंने मार डाला. जब कुछ ने रावण से पुकार की तो उसने अक्षय कुमार को सेना सहित भेजा. अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान जी को नागपाश में बांधनाहनुमान जी ने कुछ को मार डाला ,कुछ को मसल डाला . कुछ ने फिर पुकार की महाराज बंदर बहुत बलवान है . पुत्र का वध सुनकर रावण ने क्रोधित होकर मेघनाथ से कहा कि बंदर को जीवित बांधकर लाना . हनुमान जी ने मेघनाथ के युद्ध में बिना रथ के कर दिया. फिर उसे घूंसा मारा जिसे वह कुछ क्षण के लिए मूर्छित हो गया . अंत में मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया . हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि अगर ब्रह्मास्त्र को नहीं माना तो इसकी महिमा मिट जाएगी . हनुमान जी ब्रह्मास्त्र लगते हैं मूर्छित हो गए और मेघनाथ उन्हें नागपाश में बांध कर ले गया . हनुमान जी और रावण संवादहनुमान जी को देखकर रावण ने कहा वानर तू कौन है ? क्या तुमने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना ? तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? हनुमान जी कहने लगे कि जिन्होंने शिव जी के धनुष को तोड़ डाला ,त्रिशिरा ,खर दूषण और बालि को मार डाला , जिनकी प्रिय पत्नी को तू हर लाय हो मैं उनका दूत हूं . मुझे भूख लगी थी मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े . लेकिन जिन्होंने मुझे मारा मैंने उनको मारा . मैं तो अपने प्रभु का कार्य करना चाहता हूं . इसलिए मैं तुम से विनती करता हूं कि तुम अभिमान छोड़कर सीता जी को दे दो और श्री राम की शरण में चले जाओ . हनुमान जी की भक्ति ,ज्ञान, वैराग्य , नीति की वाणी सुनकर रावण क्रोधित हो कर कहने लगा कि यह बंदर मुझे शिक्षा देने चला है . राक्षस हनुमान जी को मारने दौड़े . उसी समय में विभिषण जी आए और कहने लगे नीति के अनुसार दूत को मारना नहीं चाहिए .हनुमान जी का लंका दहन रावण ने कहा कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है . इसकी पूंछ पर कपड़ा तेल में डुबोकर बांध दो और उस पर आग लगा दो . जिस मालिक की यह बहुत बड़ाई कर रहा था . जब बिना पूंँछ के बंदर वहां जाएगा तो अपने मालिक को जहां लेकर आएगा . हनुमान जी ने खेल किया और पूँछ लंबी हो गई . नगर में कपड़ा भी तेल नहीं रहा . हनुमान जी को नगर में फिरा कर पूँछ में आग लगा दी . आग को जलते देखा हनुमान जी छोटे रूप में हो गए . भगवान जी की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगी . हनुमान जी ने अट्टहास कर देह विशाल और हल्की बना ली . हनुमान जी एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते और नगर जलने लगा. लेकिन हनुमान जी ने एक विभीषण का घर नहीं जलाया. हनुमान जी ने उलट-पुलट कर सारी लंका जलाई और फिर समुंदर में कूदकर पूँछ बुझाई .हनुमान जी का सीता माता से विदा मांगनाहनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर श्री जानकी के सामने हाथ जोड़कर कहने लगे. माता मुझे कोई चिंह दीजिए . जैसे श्रीराम ने मुझे दिया था . सीता जी ने चूड़ामणि उतार कर दी . माता सीता ने हनुमान जी से कहा प्रभु से मेरा प्रणाम कहना . यदि महीने भर में नाथ नहीं आए तो मुझे जीती नहीं पाएंगे.हनुमान तुम्हें देखकर छाती ठंडी हुई थी लेकिन अब तुम जाने की को कह रहे हो.हनुमान जी ने जानकी जी को समझा कर विदा ली. हनुमान जी का समुद्र लांघकर वापिस आनासमुद्र लांघ कर हनुमान जी इस ओर आ गए. हनुमान जी को प्रसन्न देखकर सब समझ गए कि हनुमान प्रभु श्री राम का कार्य कर आए हैं. मानो सब को नया जीवन मिल गया. सब लोग श्री रघुनाथ जी के पास चले.हनुमान जी का श्री राम को सीता माता का संदेश देनाश्री रघुनाथ सबसे प्रेम सहित गले मिले. फिर जाम्बवान् ने कहा प्रभु आप जिस पर दया करते हैं . उस का कल्याण होता है. प्रभु हनुमान जी ने जो किया है उसका वर्णन हजारों मुखों से नहीं किया जा सकता. श्री रघुनाथ ने हनुमान जी को गले से लगा लिया और कहा-" हे तात! कहो सीता वहां किस प्रकार प्राणों की रक्षा करती है? "हनुमान जी ने कहा आपका नाम दिन रात पहरा देने वाला है. आपका ध्यान कपाट है और आंखें आपके चरणों में लगाए रहती है. माता सीता ने चलते समय मुझे चूड़ामणि दी . श्रीराम ने उसे हृदय से लगाया . हनुमान जी ने सीता जी का संदेश बताया " शरणागत का दुख हरने वाले मैं मन, वचन , कर्म से आपके चरणों को अनुरागिनी हूं. मेरा इतना दोष है कि आपके वियोग में मेरे प्राण नहीं गए. आपने मुझसे किस अपराध के कारण त्याग दिया है ?"उनका एक -एक पल कल्प समान बीत रहा है. हनुमान जी कहने कि प्रभु चलिए और दुष्टों को मारकर सीता जी को ले आइए. श्री राम कहने लगे कि," हनुमान तेरा समान मेरी उपकारी कोई भी नहीं है ? मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता. प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़े . प्रभु श्री राम ने उठाकर हनुमान जी को हृदय से लगाया और हाथ पकड़ कर अपने निकट बिठाया . प्रभु श्री राम पूछने लगे कि बताओ कि रावण की सोने की लंका को तुम ने कैसे जलाया? हनुमान जी कहने लगे कि ," प्रभु इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है, जिस पर आपकी कृपा होती है उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है. हे नाथ! आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें ". प्रभु श्री राम ने 'एवमस्तु ' कहा.श्री राम का सुग्रीव को वानर सेना सहित कूच करने का आदेश देना तब प्रभु श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि चलने की तैयारी करो अब विलंब किस कारण किया जाए? " वानर राज के बुलाने पर वानर सेनापतियों के झुंड आ गए. जिसमें अतुलित बल था. प्रभु श्री राम ने वानर सेना पर अपनी कृपा दृष्टि डाली और फिर सेना ने कूच किया. प्रभु का प्रस्थान माता सीता ने जान लिया क्योंकि उनके बायें अंग फड़कने लगे.मंदोदरी का रावण को श्री राम से विरोध त्याग का परामर्श हनुमान जी लंका जला कर गए तब से राक्षस भयभीत रहने लगे कि जिन के दूत के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता अगर वे स्वयं नगर में आए तो हमारे कौन भलाई करेगा. नगर वासियों के वचन सुनकर रानी मंदोदरी रावण से कहा कि ," आप श्रीहरि से विरोध छोड़ दें. यदि आप भला चाहते हैं तो मंत्री को बुलाकर उनकी स्त्री को भेज दें ". श्रीराम के बांण सर्पों के समूह के समान है और राक्षस मेंढक के समान है. प्रभु आप हठ छोड़ कर उपाय कर ले.अभिमानी रावण यह सुनकर हंसा कि तुम स्त्रियाँ स्वभाव से डरपोक होती हो . लोकपाल भी जिसके भय से कांपते हैं उसकी स्त्री के लिए यह हंसी की बात है . रावण इतना कहकर सभा में चला गया .सभा में बैठते ही उसने खबर आई कि शत्रु सेना समुंदर के पार आ गई है. रावण ने मंत्रियों से पूछा कि उचित सलाह दें . क्या किया जाए ? वे कहने लगे कि आपने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया है. तो नर, वानर किस गिनती में है ?सचिव, वैद्य, और गुरु यदि भय डर, आशा से प्रिय बोले तो राज्य, धर्म ,तन - तीनों का नाश हो जाता है. रावण के लिए अभी वही संयोग बन गया सभी उसकी स्तुति कर रहे हैं. रावण का विभीषण को लात मार कर राज्य से निकालनाउसी समय में विभीषण सभा में आए और रावण की आज्ञा पाकर वचन बोले कि जो अपना कल्याण, सुयश, सुबुद्धि , शुभ गति चाहता है . उसे पर स्त्री को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग देना चाहिए . श्रीराम को जानकी दे दीजिए और श्री राम का भजन कीजिए. हे दशाशीश ! मैं बार-बार आपके चरणों में विनती करता हूं . मुनि पुलस्त्य जी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है . अवसर पाकर मैंने आपको कह दी . माल्यवान नाम के बुद्धिमान मंत्री ने कहा कि आपके छोटे भाई विभीषण जो कह रहे हैं उन्हें हृदय से धारण करें . रावण ने कहा कि ," यह दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा का बखान कर रहे हैं , इन्हें कोई दूर कर दे.तब माल्यवान घर चले गए . विभिषण ने हाथ जोड़कर फिर से प्रार्थना करी कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में होती है . आपके हृदय में उल्टी बुद्धि आ गई है . इसलिए आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं. मैं चरण पकड़ कर आपसे विनती करता हूं. आप श्री राम को सीता जी लौटा दे और उसमें ही आप का हित है .विभिषण के वचन सुनकर रावण क्रोधित होकर उठा और कहने लगा के दुष्ट तेरी मृत्यु अब समीप है . तू मेरे पास रहकर शत्रु का पक्ष ले रहा है . तू उसी के साथ जा मिल . रावण ने यह कहकर विभीषण को लात मारी . विभीषण ने फिर से चरण पकड़े और कहने लगा कि आप मेरे पिता समान हैं . मुझे मारा तो अच्छा ही किया परंतु आप का भला श्रीराम को भजने में हैं .विभिषण का श्री राम की शरण में जानालेकिन रावण ने जिस क्षण विभीषण का त्याग किया . उसी क्षण वह वैभव से हीन हो गया . विभीषण जी हर्षित होकर श्री रघुनाथ के पास चले गए और शीघ्र ही समुंदर के पार आ गए .सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम को समाचार दिया कि प्रभु रावण का भाई आपसे मिलने आया है . मुझे लगता है कि यह हमारा भेद लेने आया है , उसे बांधकर रख लेना चाहिए. श्री राम ने कहा कि तुमने नीति तो अच्छी विचारी है . लेकिन मेरा प्रण तो शरणागत के भय को दूर करना है . प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए कि भगवान शरणागतवत्सल है . श्री राम ने कहा की शरण में आए हुए को जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, मैं उसे भी नहीं त्यागता.यदि रावण ने उसे भेद लेने भेजा है तो भी हमें उस से भय या हानि नहीं है . क्योंकि लक्ष्मण क्षण भर में सब राक्षसों को मार सकता है . यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो, मैं उसे प्राणों की तरह रखूंगा . श्री राम ने कहा कि उसे ले आओ .भगवान के स्वरूप को देखकर विभिषण की आंखों में जल भर आया और शरीर पुलकित हो गया . फिर मधुर वाणी से बोले कि हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ. मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है . मैं आपका यश सुन कर आया हूं कि, "आप दुखियों के दुख दूर करने वाले है . प्रभु मेरी रक्षा करें " .प्रभु श्री राम ने जब विभिषण को दंडवत करते देखा तो उसे अपने हृदय से लगा लिया .विभीषण जी कहने लगे कि,"आपके दर्शन करके मेरे सारे भय मिटे गए .श्रीराम ने का समंदर का जल मंगा कर विभिषण का राजतिलक कर दिया .भगवान शिव ने जो संपत्ति रावण को दस सिर अर्पण करने पर दी थी . श्रीराम ने वही संपत्ति विभीषण को सकुचाते हुए दे दी.श्रीराम ने वनराज सुग्रीव और लंकापति विभिषण से कहा कि इस गहरे समुद्र को पार कैसे किया जाए ? समुद्र को पार करना कठिन है . क्योंकि यह मगर, सांप ,मछलियों से भरा है . श्री राम का समुद्र से रास्ता बताने के लिए कहनाविभिषण ने कहा कि प्रभु आप एक ही बाण से समुंदर को सुखा सकते हैं . लेकिन नीति के अनुसार आपको समुंदर से प्रार्थना करके रास्ता पूछना चाहिए . श्रीराम ने कहा कि, "तुमने अच्छा उपाय बताया है ".यह बात लक्ष्मण जी को अच्छी नहीं लगी . वह कहने लगे कि हे नाथ! देव का कौन भरोसा. श्रीराम ने हंसकर कहा कि धीरज रखो ऐसा ही करेंगे. श्री राम ने समुद्र को निवाया और कुश के आसन कर बैठ गए . वानर सेना का रावण के भेजे दूतों को पकड़नाउधर जब विभिषण श्री राम के पास आया तो उसी समय रावण ने उसके पीछे दूत भेजे थे . जब वानरों ने जाना कि रावण के दूत हैं तो , वे उसे बांधकर सुग्रीव के पास ले गए . सुग्रीव ने कहा कि इन राक्षसों के अंग भंग करके भेज दो . वानरों ने बहुत प्रकार दूतों को मारा. दूतों ने कहा कि जो हमारे नाक कान काटेगा उसे कौशलाधीश श्रीराम की सौगंध है . उसी समय लक्ष्मण जी आए और उन्होंने वानरों से छुड़ाया. लक्ष्मण जी ने राक्षसों से कहा कि रावण को मेरा संदेश कहना . सीता जी दे कर श्रीराम से मिले . नहीं तो तुम्हारा काल आया समझो.रावण के दूतों को रावण को समझनादूत जब रावण के पास पहुंचे . वह कहने लगा विभिषण का समाचार सुनाओ .दूत ने कहा कि जब आपका भाई श्री राम से मिला तब ही श्री राम ने उसे राज्य तिलक कर दिया है . आपने श्री राम की सेना पूछी है . उसका करोड़ों मुख्य से भी वर्णन नहीं हो सकता . जिसने नगर को जलाया और आपके पुत्र को मारा उसका बल तो सब वानरों में हैं . श्री राम की कृपा से उनमें अतुलित बल है. वे तीनों लोकों को तृण समान समझते हैं . आप क्रोध त्याग कर जानकी श्रीराम को दे दीजिए . जब दूत ने जानकी श्रीराम को देने को कहा रावण ने दूत को लात मार दी . वह वही चला गया जहां श्री राम थे और राम की कृपा से उसने परम गति प्राप्त की . श्रीराम का समुद्र को सबक सिखानाउधर तीन दिन बीत जाने पर भी जब समुंदर ने विनय नहीं मानी. श्रीराम क्रोध से बोले बिना भय के प्रीति नहीं होती . श्रीराम ने अग्निबाण का संधान किया जिससे समुंदर के हृदय के अंदर अग्नि जलने लगी . समुंदर ने जीवो को जलते जाना तो अभिमान छोड़ कर ब्राह्मण का रूप धर कर सोने के थाल में अनेक मणियों को भरकर लाएं. समुंदर ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभु अच्छा किया जो आप ने मुझे शिक्षा दी. प्रभु आपके प्रताप से मैं सुख जाऊंगा और सेना पर उतर जाएगी . आपकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा वेदों में लिखा है . समुद्र के वचन सुनकर श्री राम ने कहा कि ऐसा उपाय बताओ जिससे वानर सेना पार उतर जाए.समुद्र पर सेतू बनाने का विचार देना समुंदर ने कहा कि नल और नील नाम के दो भाई हैं . उन्हें लड़कपन में आशीर्वाद मिला था कि उनका स्पर्श होते ही पहाड़ भी तर जाएंगे . मैं आपकी प्रभुताई को हृदय में धर कर अपने बल के अनुसार सहायता करूंगा. आप इस प्रकार समंदर को बांधे की तीनों लोकों में आपका सुंदर यश हो . आप इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले दुष्ट मनुष्य का वध करें . श्री राम ने समुद्र की पीड़ा को सुनकर उसे हर लिया और दुष्टों का वध कर दिया . प्रभु श्री राम के बल और पुरुष को देखकर समुंदर उनके चरणों में वंदना कर के चला गया . श्री राम को यह मत अच्छा लगा . By वनिता कासनियां पंजाबतुलसी दास जी कहते हैं कि यह चरित्र कलयुग के पापों को हरने वाला है .

SUNDER KAND
( सुंदरकाण्ड)
जय श्री राम

सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं.
तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं .

हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान
 जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले .  

हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ? 

हनुमान जी की सुरसा से मिलना
 देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी से कहने लगे कि आज देवताओं ने मुझे भोजन दिया है . हनुमान जी कहने लगे कि,मैं पहले श्रीराम का कार्य करके आऊ और उसके बाद सीता जी की खबर श्री राम को सुना दूं तो मुझे खा लेना.

मैं सत्य कहता हूं. लेकिन उसने हनुमान जी को जाने नहीं दिया . उसने अपना मुंह योजन भर फैलाया. हनुमान जी ने अपने शरीर को दुगना कर लिया . उसने अपना मुख सोलह योजन फैलाया तो हनुमान जी बत्तीस योजन के हो गए . जैसे-जैसे सुरसा मुंह बढ़ाती गई हनुमान जी दुगना हो गए .जब उसने अपना मुख सौ योजन किया तो हनुमान जी बहुत छोटे हो गए .

सुरसा के मुख से होकर बाहर आए और उनसे विदा मांगी . सुरसा ने कहा कि तुम बल बुद्धि के भंडार हो . तुम श्रीराम का कार्य अवश्य करोगे .वह हनुमान जी को आशीर्वाद देकर चली गई. 
समुंदर में एक राक्षसी रहती थी जो माया से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की परछाई पकड़ लेती थी . जिसे वो उड़ नहीं पाते थे और वह उन जीवो को खा लेती . उसमें वही कपट हनुमान जी के साथ किया . हनुमान जी ने उसे मार दिया और समंदर पार किया.

हनुमान जी का लंका में प्रवेश और लंका के द्वार पर राक्षसी से मिलना
वहाँ पहुँच कर हनुमान जी ने सुंदर वन की शोभा देखी . सामने विशाल पर्वत देखकर हनुमान जी भय त्याग कर उस पर चढ़ गए और उन्होंने लंका देखी .बहुत ही बड़ा किला है चारो और समुद्र है और सोने के परकोटे का प्रकाश हो रहा है . 

नगर के रखवालों को देखकर हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा सा रूप धारण किया और लंका में चले गए.लंका नामक राक्षसी जो लंका के द्वार पर रहती थी.वह राक्षसी हनुमान जी से कहने लगी कि कहां जा रहा है ? 

हनुमान जी ने उसे घुसा मारा तो उसे खून की उल्टी होने लगी . वह संभल कर कहने लगी कि,ब्रह्मा जी ने जब रावण को वरदान दिया था तो ,"मुझसे कहा था कि जब तुम किसी वानर के मारने से तुम व्याकुल हो जाओ तो समझ लेना कि राक्षसों का संघार होने वाला है ". मेरे बड़े पुण्य हैं जो मैं आपके दर्शन कर पाई.

हनुमान जी ने लघु रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया . हनुमान जी ने एक एक महल में सीता जी को खोजा . रावण के महल में भी उन्हें जानकी जी दिखाई नहीं दी . 

हनुमान जी और विभिषण मिलन
हनुमान जी को एक महल दिखा ,जिस पर उन्हें श्री राम के आयुध (धनुष बाण) के चिंह और तुलसी के वृक्ष दिखे . 

हनुमान जी कहने लगे लंका तो राक्षसों का निवास है लेकिन यहां पर सज्जन पुरुष का निवास कैसे ?उसी समय विभीषण जी जागे . हनुमान जी ने साधु का रूप धारण किया.

 विभिषण जी ने उनकी कुशलक्षेम पूछा . विभिषण जी ने पूछा कि ब्राह्मण देव क्या आप हरि भक्त हैं ? या फिर दीनों पर दया करने वाले स्वयं रामजी हैं . तब हनुमान जी ने श्री राम जी की सारी कथा कहीं और अपना नाम बताया .

विभीषण कहने लगे कि ,"मैं यहां वैसे ही रहता हूं जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है ", मेरा तामसी (राक्षस) शरीर है. लेकिन मन में श्रीराम के लिए अनुराग है . इसलिए मुझे लगता है कि प्रभु श्रीराम की कृपा के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं .

हनुमान जी कहने लगे कि,"मैं कौन सा कुलीन हूं"? मैं चंचल वानर हूं . प्रभु श्री राम ने ही मुझ अधम पर कृपा की है . 

विभिषण ने माता जानकी कैसे लंका में रहती है ? वह सब कथा हनुमान जी से कहीं . विभिषण जी ने युक्तियां बताई कि किस तरह हनुमान जी सीता जी के दर्शन कर सकते हैं ? हनुमान जी ने फिर मसक के समान रूप बना लिया और अशोक वाटिका में यहाँ सीता जी रहती थी वहां चले गए. 

हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता जी को देखना
सीता जी को देखकर हनुमान जी ने मन में उन्हें प्रणाम किया . सीता जी मन ही मन श्री रघुनाथ का स्मरण करती रहती हैं . जानकी जी को दीन देख कर हनुमान जी को बड़ा दुख हुआ . हनुमान जी सोच रहे हैं ऐसा क्या करें जिससे मां जानकी का दुख कम हो जाए .

रावण का सीता माता को धमकाना
उसी समय रावण सज धज कर वहां आया और सीता जी को समझाने लगा के मंदोदरी आदि रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा . तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही . 
जानकी जी तिनके की ओट करके कहने लगी कि, "तू छल से मुझे हर लाया है , तुझे लाज नहीं आती ". सीता जी के कठोर वचन सुनकर रावण गुस्से से बोला . रावण कहने लगा कि या तो मेरी बात मान ले, नहीं तो मैं तुझे काट डालूंगा . 

लेकिन मय दानव की पुत्री मंदोदरी (रावण की पत्नी) ने नीति कहकर रावण को समझाया . रावण ने राक्षसियों को सीता जी को भय दिखाने को कहा . रावण सीता जी से कहने लगा कि, " अगर एक महीने में मेरा कहा ना माना तो मैं इसे तलवार से मार डालूंगा ".

रावण के जाते ही राक्षसियां सीता जी को भय दिखाने लगी . तभी त्रिजटा नाम की राक्षसी जिसे श्री राम के चरणों में अनुराग का था. वह कहने लगे कि, "मैंने सपने में देखा कि एक वानर ने लंका जलाई . राक्षसों की सेना मारी गई और रावण दक्षिण दिशा (यमपुरी) की ओर जा रहा है . लंका मानो विभिषण को मिल गई. श्री राम ने सीता को बुला भेजा है . यह सुन कर राक्षसियां डर गई और सीता जी के चरणों में गिर गई. 
 सीता जी सोच रही है एक महीने समाप्त होने पर रावण मुझे मार डालेगा . सीता जी त्रिजटा से कहने लगी कि कोई ऐसा उपाय करो कि मैं अपना शरीर त्याग सकूं .

रावण की शूल के समान कष्ट देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती . त्रिजटा ने सीता जी को बहुत प्रकार समझाया. 

हनुमान जी का माता सीता को श्री राम की अंगूठी और संदेश देना
सीता जी को बिरह से व्याकुल देखकर हनुमान जी का एक क्षण कल्प सामान बीत रहा है . तब हनुमान जी ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी . सीताजी ने हर्षित होकर अंगूठी को उठा लिया . सीता जी सोचने लगी कि रघुनाथ तो अजय हैं. माया से अंगूठी बनाई नहीं जा सकती .
उसी समय हनुमान जी श्री राम के गुणों का वर्णन करने लगे . जिसे सुनकर सीताजी का दुख दूर हो गया . सीता जी कहने लगी कि जिसने भी यह कथा सुनाई है वह प्रकट क्यों नहीं होता ? 

जब हनुमान जी सीता जी के निकट चले गए . उन्हें देखकर जीता जी मुंह फेर कर बैठ गई . क्योंकि उन्हें आश्चर्य था नर और वानर संग कैसे हो सकते हैं ? हनुमान जी फिर पूरी कथा सुनाई. जिसे सुन कर सीता जी को विश्वास हो गया कि जय श्री राम का दास है . 

सीता जी ने श्री राम लक्ष्मण जी का कुशल मंगल पूछा . सीता जी कहने लगे कि, "क्या रघुनाथ मुझे याद करते हैं " ?सीता जी कहती हैं कि हे नाथ ! आपने मुझे क्यों भुला दिया ?

 सीता जी के विरह वचन सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि, " माता श्री राम के हृदय में आप से दूना प्रेम हैं ".अब श्री रघुनाथ का संदेश सुनो . 

 श्री राम ने कहा है कि तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं . मेघ मानो खोलता हुआ तेल बरसा रही हो . मन का दुख कहने से कम हो जाता है . पर कहूं किससे ? समझ लो कि मेरा मन सदा तेरे पास ही रहता है. प्रभु श्री राम के वचन सुनकर जानकी जी प्रेम मग्न हो गई. 

हनुमान जी कहने लगे कि माता प्रभु श्री राम ने आपकी खबर पाई होती तो प्रभु विलंब नहीं करते . लेकिन अब आप राक्षसों को जला ही जाने.

हे माता मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर मुझे श्री राम की आज्ञा नहीं है . कुछ दिन और धीरज धरो . श्रीराम वानरों सहित जहां अवश्य आएंगे .

हनुमान जी का सीता माता का संदेह दूर करने के लिए विशाल रुप प्रकट करना
 सीता जी कहने लगी कि,"क्या सब वानर तुम्हारे ही समान हैं "? राक्षस तो बहुत बलवान योद्धा है .सीता जी के मन में संदेह देखकर हनुमान जी ने विशाल शरीर प्रकट किया. जिसे देखकर जीता जी के मन में विश्वास हो गया . हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया .

हनुमान जी कहने लगे प्रभु के प्रताप से छोटा सा सर्प भी बड़े से गरुड़ को खा सकता है . हनुमान जी की वाणी सुनकर सीताजी को संतोष हुआ . सीता जी कहा कि हे पुत्र तुम अजर ,अमर और गुणों का खजाना हो जाओ . 

हनुमान जी ने कहा माता आपका आशीर्वाद अमोघ हैं .

हनुमान जी का अशोक वाटिका उजाड़ना
हनुमान जी ने सीता जी से मीठे फल खाने की अनुमति मांगी . हनुमान जी ने कुछ फल खा कर बाग उजाड़ने लगे . बहुत से योद्धा रखवालों को उन्होंने मार डाला. जब कुछ ने रावण से पुकार की तो उसने अक्षय कुमार को सेना सहित भेजा. 

अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान जी को नागपाश में बांधना
हनुमान जी ने कुछ को मार डाला ,कुछ को मसल डाला . कुछ ने फिर पुकार की महाराज बंदर बहुत बलवान है . पुत्र का वध सुनकर रावण ने क्रोधित होकर मेघनाथ से कहा कि बंदर को जीवित बांधकर लाना . हनुमान जी ने मेघनाथ के युद्ध में बिना रथ के कर दिया. फिर उसे घूंसा मारा जिसे वह कुछ क्षण के लिए मूर्छित हो गया . अंत में मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया . हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि अगर ब्रह्मास्त्र को नहीं माना तो इसकी महिमा मिट जाएगी . 

हनुमान जी ब्रह्मास्त्र लगते हैं मूर्छित हो गए और मेघनाथ उन्हें नागपाश में बांध कर ले गया . 

हनुमान जी और रावण संवाद
हनुमान जी को देखकर रावण ने कहा वानर तू कौन है ? क्या तुमने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना ? तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? 

हनुमान जी कहने लगे कि जिन्होंने शिव जी के धनुष को तोड़ डाला ,त्रिशिरा ,खर दूषण और बालि को मार डाला , जिनकी प्रिय पत्नी को तू हर लाय हो मैं उनका दूत हूं . 

मुझे भूख लगी थी मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े . लेकिन जिन्होंने मुझे मारा मैंने उनको मारा . मैं तो अपने प्रभु का कार्य करना चाहता हूं . इसलिए मैं तुम से विनती करता हूं कि तुम अभिमान छोड़कर सीता जी को दे दो और श्री राम की शरण में चले जाओ . 

हनुमान जी की भक्ति ,ज्ञान, वैराग्य , नीति की वाणी सुनकर रावण क्रोधित हो कर कहने लगा कि यह बंदर मुझे शिक्षा देने चला है . राक्षस हनुमान जी को मारने दौड़े . उसी समय में विभिषण जी आए और कहने लगे नीति के अनुसार दूत को मारना नहीं चाहिए .

हनुमान जी का लंका दहन
 रावण ने कहा कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है . इसकी पूंछ पर कपड़ा तेल में डुबोकर बांध दो और उस पर आग लगा दो . 

जिस मालिक की यह बहुत बड़ाई कर रहा था . जब बिना पूंँछ के बंदर वहां जाएगा तो अपने मालिक को जहां लेकर आएगा . हनुमान जी ने खेल किया और पूँछ लंबी हो गई . नगर में कपड़ा भी तेल नहीं रहा . हनुमान जी को नगर में फिरा कर पूँछ में आग लगा दी . 

आग को जलते देखा हनुमान जी छोटे रूप में हो गए . भगवान जी की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगी . हनुमान जी ने अट्टहास कर देह विशाल और हल्की बना ली . हनुमान जी एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते और नगर जलने लगा. 

लेकिन हनुमान जी ने एक विभीषण का घर नहीं जलाया. हनुमान जी ने उलट-पुलट कर सारी लंका जलाई और फिर समुंदर में कूदकर पूँछ बुझाई .

हनुमान जी का सीता माता से विदा मांगना
हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर श्री जानकी के सामने हाथ जोड़कर कहने लगे. माता मुझे कोई चिंह दीजिए . जैसे श्रीराम ने मुझे दिया था . सीता जी ने चूड़ामणि उतार कर दी . माता सीता ने हनुमान जी से कहा प्रभु से मेरा प्रणाम कहना . यदि महीने भर में नाथ नहीं आए तो मुझे जीती नहीं पाएंगे.हनुमान तुम्हें देखकर छाती ठंडी हुई थी लेकिन अब तुम जाने की को कह रहे हो.

हनुमान जी ने जानकी जी को समझा कर विदा ली.  

हनुमान जी का समुद्र लांघकर वापिस आना
समुद्र लांघ कर हनुमान जी इस ओर आ गए. हनुमान जी को प्रसन्न देखकर सब समझ गए कि हनुमान प्रभु श्री राम का कार्य कर आए हैं. मानो सब को नया जीवन मिल गया. सब लोग श्री रघुनाथ जी के पास चले.

हनुमान जी का श्री राम को सीता माता का संदेश देना
श्री रघुनाथ सबसे प्रेम सहित गले मिले. फिर जाम्बवान् ने कहा प्रभु आप जिस पर दया करते हैं . उस का कल्याण होता है. प्रभु हनुमान जी ने जो किया है उसका वर्णन हजारों मुखों से नहीं किया जा सकता.

  श्री रघुनाथ ने हनुमान जी को गले से लगा लिया और कहा-" हे तात! कहो सीता वहां किस प्रकार प्राणों की रक्षा करती है? "

हनुमान जी ने कहा आपका नाम दिन रात पहरा देने वाला है. आपका ध्यान कपाट है और आंखें आपके चरणों में लगाए रहती है. माता सीता ने चलते समय मुझे चूड़ामणि दी . श्रीराम ने उसे हृदय से लगाया . हनुमान जी ने सीता जी का संदेश बताया " शरणागत का दुख हरने वाले मैं मन, वचन , कर्म से आपके चरणों को अनुरागिनी हूं. मेरा इतना दोष है कि आपके वियोग में मेरे प्राण नहीं गए. आपने मुझसे किस अपराध के कारण त्याग दिया है ?"उनका एक -एक पल कल्प समान बीत रहा है. हनुमान जी कहने कि प्रभु चलिए और दुष्टों को मारकर सीता जी को ले आइए. 

 श्री राम कहने लगे कि," हनुमान तेरा समान मेरी उपकारी कोई भी नहीं है ? मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता.

 प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़े . प्रभु श्री राम ने उठाकर हनुमान जी को हृदय से लगाया और हाथ पकड़ कर अपने निकट बिठाया . प्रभु श्री राम पूछने लगे कि बताओ कि रावण की सोने की लंका को तुम ने कैसे जलाया? 

 हनुमान जी कहने लगे कि ," प्रभु इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है, जिस पर आपकी कृपा होती है उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है. हे नाथ! आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें ". प्रभु श्री राम ने 'एवमस्तु ' कहा.

श्री राम का सुग्रीव को वानर सेना सहित कूच करने का आदेश देना
 तब प्रभु श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि चलने की तैयारी करो अब विलंब किस कारण किया जाए? " वानर राज के बुलाने पर वानर सेनापतियों के झुंड आ गए. जिसमें अतुलित बल था. प्रभु श्री राम ने वानर सेना पर अपनी कृपा दृष्टि डाली और फिर सेना ने कूच किया.

 प्रभु का प्रस्थान माता सीता ने जान लिया क्योंकि उनके बायें अंग फड़कने लगे.

मंदोदरी का रावण को श्री राम से विरोध त्याग का परामर्श
 हनुमान जी लंका जला कर गए तब से राक्षस भयभीत रहने लगे कि जिन के दूत के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता अगर वे स्वयं नगर में आए तो हमारे कौन भलाई करेगा. नगर वासियों के वचन सुनकर रानी मंदोदरी रावण से कहा कि ," आप श्रीहरि से विरोध छोड़ दें. यदि आप भला चाहते हैं तो मंत्री को बुलाकर उनकी स्त्री को भेज दें ". श्रीराम के बांण सर्पों के समूह के समान है और राक्षस मेंढक के समान है. प्रभु आप हठ छोड़ कर उपाय कर ले.

अभिमानी रावण यह सुनकर हंसा कि तुम स्त्रियाँ स्वभाव से डरपोक होती हो . लोकपाल भी जिसके भय से कांपते हैं उसकी स्त्री के लिए यह हंसी की बात है .

 रावण इतना कहकर सभा में चला गया .सभा में बैठते ही उसने खबर आई कि शत्रु सेना समुंदर के पार आ गई है. रावण ने मंत्रियों से पूछा कि उचित सलाह दें . क्या किया जाए ? वे कहने लगे कि आपने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया है. तो नर, वानर किस गिनती में है ?

सचिव, वैद्य, और गुरु यदि भय डर, आशा से प्रिय बोले तो राज्य, धर्म ,तन - तीनों का नाश हो जाता है. रावण के लिए अभी वही संयोग बन गया सभी उसकी स्तुति कर रहे हैं. 

रावण का विभीषण को लात मार कर राज्य से निकालना
उसी समय में विभीषण सभा में आए और रावण की आज्ञा पाकर वचन बोले कि जो अपना कल्याण, सुयश, सुबुद्धि , शुभ गति चाहता है . उसे पर स्त्री को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग देना चाहिए . 

श्रीराम को जानकी दे दीजिए और श्री राम का भजन कीजिए. हे दशाशीश ! मैं बार-बार आपके चरणों में विनती करता हूं . मुनि पुलस्त्य जी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है . अवसर पाकर मैंने आपको कह दी .

 माल्यवान नाम के बुद्धिमान मंत्री ने कहा कि आपके छोटे भाई विभीषण जो कह रहे हैं उन्हें हृदय से धारण करें . रावण ने कहा कि ," यह दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा का बखान कर रहे हैं , इन्हें कोई दूर कर दे.

तब माल्यवान घर चले गए . विभिषण ने हाथ जोड़कर फिर से प्रार्थना करी कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में होती है . आपके हृदय में उल्टी बुद्धि आ गई है . इसलिए आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं. मैं चरण पकड़ कर आपसे विनती करता हूं. आप श्री राम को सीता जी लौटा दे और उसमें ही आप का हित है .

विभिषण के वचन सुनकर रावण क्रोधित होकर उठा और कहने लगा के दुष्ट तेरी मृत्यु अब समीप है . तू मेरे पास रहकर शत्रु का पक्ष ले रहा है . तू उसी के साथ जा मिल . 

रावण ने यह कहकर विभीषण को लात मारी . विभीषण ने फिर से चरण पकड़े और कहने लगा कि आप मेरे पिता समान हैं . मुझे मारा तो अच्छा ही किया परंतु आप का भला श्रीराम को भजने में हैं .

विभिषण का श्री राम की शरण में जाना
लेकिन रावण ने जिस क्षण विभीषण का त्याग किया . उसी क्षण वह वैभव से हीन हो गया . विभीषण जी हर्षित होकर श्री रघुनाथ के पास चले गए और शीघ्र ही समुंदर के पार आ गए .

सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम को समाचार दिया कि प्रभु रावण का भाई आपसे मिलने आया है . मुझे लगता है कि यह हमारा भेद लेने आया है , उसे बांधकर रख लेना चाहिए. श्री राम ने कहा कि तुमने नीति तो अच्छी विचारी है . लेकिन मेरा प्रण तो शरणागत के भय को दूर करना है . 

प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए कि भगवान शरणागतवत्सल है . श्री राम ने कहा की शरण में आए हुए को जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, मैं उसे भी नहीं त्यागता.

यदि रावण ने उसे भेद लेने भेजा है तो भी हमें उस से भय या हानि नहीं है . क्योंकि लक्ष्मण क्षण भर में सब राक्षसों को मार सकता है . यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो, मैं उसे प्राणों की तरह रखूंगा . श्री राम ने कहा कि उसे ले आओ .

भगवान के स्वरूप को देखकर विभिषण की आंखों में जल भर आया और शरीर पुलकित हो गया . फिर मधुर वाणी से बोले कि हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ. मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है . मैं आपका यश सुन कर आया हूं कि, "आप दुखियों के दुख दूर करने वाले है . प्रभु मेरी रक्षा करें " .

प्रभु श्री राम ने जब विभिषण को दंडवत करते देखा तो उसे अपने हृदय से लगा लिया .विभीषण जी कहने लगे कि,"आपके दर्शन करके मेरे सारे भय मिटे गए .श्रीराम ने का समंदर का जल मंगा कर विभिषण का राजतिलक कर दिया .

भगवान शिव ने जो संपत्ति रावण को दस सिर अर्पण करने पर दी थी . श्रीराम ने वही संपत्ति विभीषण को सकुचाते हुए दे दी.

श्रीराम ने वनराज सुग्रीव और लंकापति विभिषण से कहा कि इस गहरे समुद्र को पार कैसे किया जाए ? समुद्र को पार करना कठिन है . क्योंकि यह मगर, सांप ,मछलियों से भरा है . 

श्री राम का समुद्र से रास्ता बताने के लिए कहना
विभिषण ने कहा कि प्रभु आप एक ही बाण से समुंदर को सुखा सकते हैं . लेकिन नीति के अनुसार आपको समुंदर से प्रार्थना करके रास्ता पूछना चाहिए . श्रीराम ने कहा कि, "तुमने अच्छा उपाय बताया है ".

यह बात लक्ष्मण जी को अच्छी नहीं लगी . वह कहने लगे कि हे नाथ! देव का कौन भरोसा. श्रीराम ने हंसकर कहा कि धीरज रखो ऐसा ही करेंगे. श्री राम ने समुद्र को निवाया और कुश के आसन कर बैठ गए . 

वानर सेना का रावण के भेजे दूतों को पकड़ना
उधर जब विभिषण श्री राम के पास आया तो उसी समय रावण ने उसके पीछे दूत भेजे थे . जब वानरों ने जाना कि रावण के दूत हैं तो , वे उसे बांधकर सुग्रीव के पास ले गए . सुग्रीव ने कहा कि इन राक्षसों के अंग भंग करके भेज दो .

 वानरों ने बहुत प्रकार दूतों को मारा. दूतों ने कहा कि जो हमारे नाक कान काटेगा उसे कौशलाधीश श्रीराम की सौगंध है . उसी समय लक्ष्मण जी आए और उन्होंने वानरों से छुड़ाया. लक्ष्मण जी ने राक्षसों से कहा कि रावण को मेरा संदेश कहना . सीता जी दे कर श्रीराम से मिले . नहीं तो तुम्हारा काल आया समझो.

रावण के दूतों को रावण को समझना
दूत जब रावण के पास पहुंचे . वह कहने लगा विभिषण का समाचार सुनाओ .

दूत ने कहा कि जब आपका भाई श्री राम से मिला तब ही श्री राम ने उसे राज्य तिलक कर दिया है . आपने श्री राम की सेना पूछी है . उसका करोड़ों मुख्य से भी वर्णन नहीं हो सकता . जिसने नगर को जलाया और आपके पुत्र को मारा उसका बल तो सब वानरों में हैं . श्री राम की कृपा से उनमें अतुलित बल है. 

वे तीनों लोकों को तृण समान समझते हैं . आप क्रोध त्याग कर जानकी श्रीराम को दे दीजिए . जब दूत ने जानकी श्रीराम को देने को कहा रावण ने दूत को लात मार दी . वह वही चला गया जहां श्री राम थे और राम की कृपा से उसने परम गति प्राप्त की . 

श्रीराम का समुद्र को सबक सिखाना
उधर तीन दिन बीत जाने पर भी जब समुंदर ने विनय नहीं मानी. श्रीराम क्रोध से बोले बिना भय के प्रीति नहीं होती . श्रीराम ने अग्निबाण का संधान किया जिससे समुंदर के हृदय के अंदर अग्नि जलने लगी .

 समुंदर ने जीवो को जलते जाना तो अभिमान छोड़ कर ब्राह्मण का रूप धर कर सोने के थाल में अनेक मणियों को भरकर लाएं. 

समुंदर ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभु अच्छा किया जो आप ने मुझे शिक्षा दी. प्रभु आपके प्रताप से मैं सुख जाऊंगा और सेना पर उतर जाएगी . आपकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा वेदों में लिखा है . समुद्र के वचन सुनकर श्री राम ने कहा कि ऐसा उपाय बताओ जिससे वानर सेना पार उतर जाए.

समुद्र पर सेतू बनाने का विचार देना
 समुंदर ने कहा कि नल और नील नाम के दो भाई हैं . उन्हें लड़कपन में आशीर्वाद मिला था कि उनका स्पर्श होते ही पहाड़ भी तर जाएंगे . मैं आपकी प्रभुताई को हृदय में धर कर अपने बल के अनुसार सहायता करूंगा. 

आप इस प्रकार समंदर को बांधे की तीनों लोकों में आपका सुंदर यश हो . आप इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले दुष्ट मनुष्य का वध करें . श्री राम ने समुद्र की पीड़ा को सुनकर उसे हर लिया और दुष्टों का वध कर दिया . 

प्रभु श्री राम के बल और पुरुष को देखकर समुंदर उनके चरणों में वंदना कर के चला गया . श्री राम को यह मत अच्छा लगा . 
तुलसी दास जी कहते हैं कि यह चरित्र कलयुग के पापों को हरने वाला है .

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पीपल के अलावा कौन-कौन से वृक्ष रात को ऑक्सीजन छोड़ते हैं? By वनिता कासनियां से ऑक्सीजन हमारे लिए बहुत जरूरी है, स्वच्छ वातावरण के लिए अक्सर लोग घर के आंगन नें पेड़ पौधे लगाते हैं। हम लोग यह जानते हैं कि दिन में इनकेे आसपास रहना अच्छा होते है क्योंकि यह ऑक्सीजन छोड़ते और इंसानों के द्वारा छोडी गई कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करते हैं। जिससे हम आसानी से सांस ले पाते हैं लेकिन रात को यही पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते और ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। रात को भी घर के आसपास वातावरण को शुद्ध रखना चाहते हैं तो ऐसे पौधे लगा सकते है जो रात के समय भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं। (चलिए हम इन्हें बिस्तर से जान लेते हैं।) ये 8 पौधों जो रात को भी देते हैं ऑक्सीजन:- 1. Elovera:- ब्यूटी और सेहत के साथ-साथ एलोवीरा वातावरण को भी शुद्ध रखता है। यह रात के समय ऑक्सीजन छोड़ता है। 2. Snake Plant:- यह पौधा गॉर्डन की खूबसूरती को बढाता है। ये हवा को शुद्ध रखने का काम करता है। 3. Neem Tree:- यह स्वाद में चाहे कड़वा होता है लेकिन कीडे-मकौडों को दूर करने का भी काम करता है। इससे वातावरण शुद्ध रहता है। 4. Tulsi:- तुलसी बहुत अच्छा हर्ब है। सेहत के अलावा वातावरण के लिए भी बैस्ट है। 5. Peepal Tree:- सेहत और वातावरण के लिए यह बैस्ट है। 6. Orchids:- फूलों से घर के आंगन को सजाना चाहते हैं और साथ ही हवा को भी स्वच्छ बनाए रखने के लिए घर में लगाएं यह पौधा। 7. Orange Gerbera:- घर को खुशनुमा बनाने के लिए ऑरेंज गेर्बेरा का पौधा लगाएं। 8. Christmas Cactus:- यह पौधा रात के समय ऑक्सीजन छोड़ने का काम करता है।

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स्वास्थ्य घरेलू नुस्खेक्या पेनिस कैंसर भी होता है?हाँ ।लिंग कैंसर के लक्षणनीचे दिए गए संकेत और लक्षण हमेशा मतलब नहीं है कि एक आदमी को शिश्न कैंसर है। वास्तव में, कई अन्य स्थितियों के कारण होने की संभावना है। फिर भी, यदि आपके पास उनमें से कोई भी है, तो तुरंत एक डॉक्टर को देखें ताकि जरूरत पड़ने पर उनका कारण खोजा जा सके और इलाज किया जा सके। जितनी जल्दी एक निदान किया जाता है, उतनी ही जल्दी आप उपचार शुरू कर सकते हैं और बेहतर यह काम करने की संभावना है।त्वचा में बदलावशिश्न कैंसर का पहला संकेत सबसे अधिक बार लिंग की त्वचा में बदलाव होता है। यह सबसे अधिक संभावना है कि लिंग के अग्र भाग (नोक) पर या अग्रभाग (अनियंत्रित पुरुषों में) होता है, लेकिन यह शाफ्ट पर भी हो सकता है। इन परिवर्तनों में शामिल हो सकते हैं:त्वचा का एक क्षेत्र मोटा होनात्वचा के रंग में परिवर्तनएक गांठएक अल्सर (घाव) जो खून बह सकता हैचमड़ी के नीचे एक लाल, मखमली दानेछोटे, crusty धक्कोंसपाट, नीले-भूरे रंग के विकासचमड़ी के नीचे बदबूदार स्त्राव (द्रव) या रक्तस्रावपेनिल कैंसर से घाव या गांठ आमतौर पर चोट नहीं करते हैं, लेकिन वे हो सकते हैं। आपको एक डॉक्टर को देखना चाहिए कि क्या आपको अपने लिंग पर किसी प्रकार की नई वृद्धि या अन्य असामान्यता मिलती है, भले ही यह दर्दनाक न हो। कोई भी परिवर्तन जो लगभग 4 सप्ताह में बेहतर नहीं होता है, या खराब हो जाता है, एक डॉक्टर द्वारा जांच की जानी चाहिए।सूजनलिंग के अंत में सूजन, खासकर जब चमड़ी संकुचित होती है, शिश्न कैंसर का एक और संभावित संकेत है। चमड़ी को वापस खींचना कठिन हो सकता है।कमर के क्षेत्र में त्वचा के नीचे गांठयदि कैंसर लिंग से फैलता है, तो यह अक्सर सबसे पहले ग्रोइन में लिम्फ नोड्स की यात्रा करता है। यह उन लिम्फ नोड्स को प्रफुल्लित कर सकता है। लिम्फ नोड्स प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं का संग्रह हैं। आम तौर पर, वे सेम-आकार के होते हैं और मुश्किल से सभी पर महसूस किए जा सकते हैं। यदि वे सूज गए हैं, तो लिम्फ नोड्स त्वचा के नीचे चिकनी गांठ की तरह महसूस कर सकते हैं।लेकिन सूजन लिम्फ नोड्स हमेशा मतलब नहीं है कि कैंसर वहाँ फैल गया है। आमतौर पर, एक संक्रमण के जवाब में लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं। शिश्न के कैंसर में और उसके आस-पास की त्वचा अक्सर संक्रमित हो सकती है, जिससे आसपास के लिम्फ नोड्स सूज सकते हैं, भले ही कैंसर उन तक नहीं पहुंचा हो।पेनाइल कैंसर के लिए टेस्टयदि आपको पेनाइल कैंसर के संभावित लक्षण हैं तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। एक शारीरिक परीक्षा होगी और आपको यह पता लगाने के लिए कुछ परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है कि आपके लक्षण क्या हैं।मेडिकल इतिहास और शारीरिक परीक्षाडॉक्टर आपसे आपके मेडिकल इतिहास और आपके लक्षणों के विवरण के बारे में बात करेंगे, जैसे कि वे कब शुरू हुए और अगर वे बदल गए हैं। आप किसी भी संभावित जोखिम कारकों पर चर्चा करेंगे।डॉक्टर पेनाइल कैंसर या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के संभावित संकेतों के लिए आपके जननांग क्षेत्र को भी ध्यान से देखेंगे। शिश्न के घाव (घाव) आमतौर पर लिंग पर त्वचा को प्रभावित करते हैं, इसलिए एक डॉक्टर अक्सर लिंग को करीब से देखकर कैंसर और अन्य समस्याओं का पता लगा सकता है। डॉक्टर आपके ग्रोइन में लिम्फ नोड्स को देखने और महसूस करने के लिए देख सकते हैं कि क्या वे सूजे हुए हैं।यदि लक्षण और / या परीक्षा से पता चलता है कि आपको पेनाइल कैंसर हो सकता है, तो अन्य परीक्षणों की आवश्यकता होगी। इनमें बायोप्सी और इमेजिंग परीक्षण शामिल हो सकते हैं।बायोप्सीएक बायोप्सी यह जानने का एकमात्र निश्चित तरीका है कि क्या परिवर्तन शिश्न कैंसर है। ऐसा करने के लिए, ऊतक का एक छोटा सा टुकड़ा बदल क्षेत्र से लिया जाता है और एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है। वहाँ, यह देखने के लिए एक माइक्रोस्कोप के साथ देखा जाता है कि इसमें कैंसर कोशिकाएं हैं या नहीं। परिणाम आमतौर पर कुछ दिनों में उपलब्ध होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अधिक समय लग सकता है।कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी)एक सीटी स्कैन आपके शरीर की विस्तृत क्रॉस-सेक्शनल छवियों को बनाने के लिए एक्स-रे का उपयोग करता है। यह दिखा सकता है कि ट्यूमर कितना बड़ा है और यह भी देखने में मदद कर सकता है कि कैंसर लिम्फ नोड्स या शरीर के अन्य भागों में फैल गया है या नहीं।सीटी-निर्देशित सुई बायोप्सी: सीटी स्कैन का उपयोग बायोप्सी सुई को एक बढ़े हुए लिम्फ नोड या अन्य क्षेत्र में कैंसर फैलाने के लिए किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए, आप सीटी टेबल पर रहते हैं, जबकि एक डॉक्टर आपकी त्वचा के माध्यम से और द्रव्यमान की ओर एक बायोप्सी सुई ले जाता है। सीटी स्कैन दोहराया जाता है जब तक सुई द्रव्यमान के अंदर नहीं होती है। एक बायोप्सी नमूना फिर निकाल दिया जाता है और एक माइक्रोस्कोप के तहत जाँच के लिए भेजा जाता है।चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (MRI)सीटी स्कैन की तरह, एमआरआई शरीर में नरम ऊतकों की विस्तृत छवियां दिखाते हैं। लेकिन एमआरआई स्कैन एक्स-रे के बजाय रेडियो तरंगों और मजबूत मैग्नेट का उपयोग करते हैं।यदि लिंग खड़ा है तो MRI चित्र बेहतर हैं। डॉक्टर इसे बनाने के लिए लिंग में प्रोस्टाग्लैंडीन नामक हार्मोन जैसा पदार्थ इंजेक्ट कर सकते हैं।अल्ट्रासाउंडआंतरिक अंगों या द्रव्यमान के चित्र बनाने के लिए अल्ट्रासाउंड ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। यह पता लगाना उपयोगी हो सकता है कि लिंग में कैंसर कितनी गहराई से फैला है। यह ग्रोइन में बढ़े हुए लिम्फ नोड्स को खोजने में भी मदद कर सकता है।यह परीक्षण दर्द रहित होता है और आपको विकिरण के संपर्क में नहीं लाता है। अधिकांश अल्ट्रासाउंड परीक्षाओं के लिए, त्वचा को पहले जेल के साथ चिकनाई की जाती है। फिर एक तकनीशियन लिंग की त्वचा के ऊपर ट्रांसड्यूसर ले जाता है।छाती का एक्स - रेपेनाइल कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?पेनाइल कैंसर वाले अधिकांश पुरुषों के लिए सर्जरी मुख्य उपचार है, लेकिन कभी-कभी विकिरण चिकित्सा का उपयोग किया जा सकता है, या तो सर्जरी के अलावा या इसके अलावा। प्रारंभिक चरण के ट्यूमर के लिए अन्य स्थानीय उपचारों का भी उपयोग किया जा सकता है। कीमोथेरेपी कुछ बड़े ट्यूमर के लिए दी जा सकती है या यदि कैंसर फैल गया है।सामान्य उपचार दृष्टिकोणआपकी कैंसर देखभाल टीम का लक्ष्य आपके लिंग को कैसे दिखता है और काम करता है, इस पर उपचार के प्रभावों को सीमित करते हुए कैंसर का इलाज करना है।यदि कैंसर को ठीक नहीं किया जा सकता है, तो लक्ष्य जितना संभव हो उतना कैंसर को हटाने या नष्ट करना हो सकता है और ट्यूमर को अधिक से अधिक फैलने, फैलने या लौटने से रोक सकता है। कभी-कभी उपचार लक्षणों को दूर करने के उद्देश्य से होता है, जैसे कि दर्द या रक्तस्राव, भले ही आप ठीक न हों।पेनाइल कैंसर का इलाज कौन करता है?आपके उपचार विकल्पों के आधार पर, आपकी उपचार टीम में विभिन्न प्रकार के डॉक्टर हो सकते हैं। इन डॉक्टरों में शामिल हो सकते हैं:एक मूत्र रोग विशेषज्ञ: एक सर्जन जो पुरुष जननांगों और मूत्र पथ के रोगों में माहिर हैएक विकिरण ऑन्कोलॉजिस्ट: एक डॉक्टर जो कैंसर के इलाज के लिए विकिरण का उपयोग करता हैएक चिकित्सा ऑन्कोलॉजिस्ट: एक डॉक्टर जो कैंसर का इलाज करने के लिए कीमोथेरेपी और अन्य दवाओं का उपयोग करता हैइलाज बंद करना या बिना किसी उपचार के चुननाकुछ लोगों के लिए, जब उपचार की कोशिश की गई है और अब कैंसर को नियंत्रित नहीं कर रहे हैं, तो यह उन उपचारों को आजमाने के लिए लाभ और जोखिमों को तौलने का समय हो सकता है। आप उपचार जारी रखते हैं या नहीं, फिर भी कुछ चीजें हैं जो आप अपने जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने या बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।कुछ लोग, विशेष रूप से अगर कैंसर उन्नत है, तो शायद बिल्कुल भी इलाज न करना पड़े। ऐसे कई कारण हैं जिनसे आप कैंसर का इलाज नहीं करवा सकते, लेकिन अपने डॉक्टरों से बात करना महत्वपूर्ण है और आप यह निर्णय लेते हैं। याद रखें कि भले ही आप कैंसर का इलाज नहीं करना चाहते हैं, फिर भी आप दर्द या अन्य लक्षणों की मदद के लिए सहायक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।मैं आशा करती हूँ की आप जवाब से सहमत होंगे।

स्वास्थ्य घरेलू नुस्खे क्या पेनिस कैंसर भी होता है? हाँ । लिंग कैंसर के लक्षण नीचे दिए गए संकेत और लक्षण हमेशा मतलब नहीं है कि एक आदमी को शिश्न कैंसर है। वास्तव में, कई अन्य स्थितियों के कारण होने की संभावना है। फिर भी, यदि आपके पास उनमें से कोई भी है, तो तुरंत एक डॉक्टर को देखें ताकि जरूरत पड़ने पर उनका कारण खोजा जा सके और इलाज किया जा सके। जितनी जल्दी एक निदान किया जाता है, उतनी ही जल्दी आप उपचार शुरू कर सकते हैं और बेहतर यह काम करने की संभावना है। त्वचा में बदलाव शिश्न कैंसर का पहला संकेत सबसे अधिक बार लिंग की त्वचा में बदलाव होता है। यह सबसे अधिक संभावना है कि लिंग के अग्र भाग (नोक) पर या अग्रभाग (अनियंत्रित पुरुषों में) होता है, लेकिन यह शाफ्ट पर भी हो सकता है। इन परिवर्तनों में शामिल हो सकते हैं: त्वचा का एक क्षेत्र मोटा होना त्वचा के रंग में परिवर्तन एक गांठ एक अल्सर (घाव) जो खून बह सकता है चमड़ी के नीचे एक लाल, मखमली दाने छोटे, crusty धक्कों सपाट, नीले-भूरे रंग के विकास चमड़ी के नीचे बदबूदार स्त्राव (द्रव) या रक्तस्राव पेनिल कैंसर से घाव या गांठ आमतौर पर चोट नहीं करते हैं, लेकि...

What are the early symptoms of throat cancer?By Vanitha Kasniya PunjabThroat cancer: - On hearing the name cancer, a person wakes up with shivering, cancer is a very deadly disease, and its

गले का कैंसर होने पर शुरुआती तौर क्या-क्या लक्षण दिखाई देते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब गले का कैंसर  :- कैंसर नाम सुनते ही आदमी के शरीर मे कंपकपी से उठते है,कैंसर बहुत ही जानलेवा बीमारी है, और इसका कोई इलाज नही सिवाय मृत्यु के, ऐसे लोग समझते है ,लेकिन ये पूरा सच नही है। कैंसर किसी भी व्यक्ति को हो सकते है, इसके सुरूवात में अगर आपको लक्षण मिल जाये तो इसका इलाज कुछ हद तक संभव है, जिस भी व्यक्ति को ये हो जाता है वह जीने की उम्मीद ही छोड़ देता हैं। और कई लोग तो ऐसे समझने लगते है कि जितने दिन जी रहे है उतना दिन ही बहेतर है। इसमे हम कुछ गले का कैंसर के बारे में बता रहे हैं जिससे आप जान पाएंगे, जो निम्न है:- इस प्रकार के कैंसर अरम्भ में कोई लक्षण में सर्वाधिक रूप पाया जाता है, बाद में गले में एक विशेष प्रकार के कष्ट की अनुभूति होने लगती है। उसे गले में कांटा चुभने का सा दर्द होता है, उसके बाद ही गले में खच खच पीड़ा उत्पन्न होती है। आँख में कष्ट का बोध होता है, और धीरे-धीरे सख्त पदार्थ आना संभव हो जाता है। गले में फोड़े के समान कष्ट प्रतीत होने लगता है, निगलने में कष्ट होने लगता है गग्रसिन ...