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,क्या बिना ग्राफ्टिंग के भी एक ही पौधे पर एक साथ अलग-अलग रंगों और आकार के दो गुलाब खिल सकते हैं?By वनिता कासनियां पंजाबवैसे तो संभव लगता नही है की गुण बदल जाए। लेकिन प्रकृति विलक्षण है कुछ भी हो सकता है और ऐसे में मुंह से सिर्फ यही निकलता है अदभुद।

, क्या बिना ग्राफ्टिंग के भी एक ही पौधे पर एक साथ अलग-अलग रंगों और आकार के दो गुलाब खिल सकते हैं? By  वनिता कासनियां पंजाब वैसे तो संभव लगता नही है की गुण बदल जाए। लेकिन प्रकृति विलक्षण है कुछ भी हो सकता है और ऐसे में मुंह से सिर्फ यही निकलता है अदभुद।

🚩🪴दीपावली🪴🚩नर्क चतुर्दशीदीपदान की विशेष प्रथा है, जो यमराज के लिए किया जाता हैBy वनिता कासनियां पंजाबयह त्यौहार नरक चौदस व नर्क चतुर्दशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।नर्क चतुर्दशीKrishna Narakasura.jpgकृष्ण और सत्यभामा नरकासुर मर्दन करते हुए- चित्रांकनआधिकारिक नामनर्क चतुर्दशी व्रतअनुयायीहिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासीप्रकारHinduतिथिकार्तिक कृष्ण चतुर्दशीसंध्या को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह बहुत महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धन-त्रयोदशी (धनतेरस) फिर नरक चतुर्दशी (नरक चौदस) व छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोवर्धन पूजा व बलि प्रतिपदा, भ्रातृ-द्वितीया (भाईदूज) ।परिदृश्यसंपादित करेंनरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के समय उसी प्रकार दीए की जगमगाहट से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएँ और लोकमान्यताएँ हैं। (एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह सहस्र एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।)इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था पर जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचम्भित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का अर्थ है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष का समय दे दिया। राजा अपनी समस्या लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है। और इसके उपरान्त क्रमशः दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज (भ्रातृ-द्वितीया) मनायी जाती है।कथासंपादित करेंपौराणिक कथा है कि इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं।उद्देश्यइस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासियों ने अपने हर्ष के दीयें जलाकर उत्सव मनाया व भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण का स्वागत किया।

🚩🪴दीपावली🪴🚩 नर्क चतुर्दशी दीपदान की विशेष प्रथा है, जो यमराज के लिए किया जाता है By  वनिता कासनियां पंजाब यह त्यौहार  नरक चौदस  व  नर्क चतुर्दशी  के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। नर्क चतुर्दशी कृष्ण  और  सत्यभामा  नरकासुर मर्दन करते हुए- चित्रांकन आधिकारिक नाम नर्क चतुर्दशी व्रत अनुयायी हिन्दू , भारतीय, भारतीय प्रवासी प्रकार Hindu तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी संध्या को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह बहुत महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धन-त्रयोदशी (धनतेरस) फिर नरक चतुर्दशी (नरक चौदस) व छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोवर्

🚩🪴 कहानिया🪴🚩 "आये हैं समझाने लोग " By वनिता कासनियां पंजाब लोग आएंगे आपको समझाने मगर वो न समझेंगे की दुःख के अलग अलग लेवल्स होतें है। किसी को थोड़ा किसी को ज्यादा और कई लोगों का गम ऐसा होता है की दिखाना बंद हो जाता है , चेतना सुन्न हो जाती है। समझने और सोचने की शक्ति ही ख़तम हो जाती है पर समझना तो पड़ेगा ही इसीलिए ये टाइटल "आये हैं समझने लोग " । दिल को सँभालने के लिए हम तीन लेवल्स पर बात करेंगे । कुछ लोग पहले लेवल से ठीक होना शुरू हो जाएंगे । कुछ को दूसरे की भी ज़रूरत पड़ेगी और कुछ ऐसे इश्क के मारे होंगे जिन्हें तीसरे की भी जरूरत पड़ेगी। । शारीरिक स्तर पर (Physical level ) मानसिक स्तर पर (Psychological level ) आध्यात्मिक स्तर पर (Spiritual level ) 1. शारीरिक स्तर (Physical level ) रोना- धोना टूटे हुए दिल में बसा होता है ढेर सारा गुस्सा, कुंठायें और न ख़तम होने वाला रोना।। शरीर का नियम है की नकारात्मक को अपने आप बाहर फेंकता है। रोना शरीर का एक्सप्रेशन है दिल में बसे नेगेटिव को बाहर फेंकने का। रुलाई अपने आप आती है उसे न रोकें उसे आने दें। लड़कियां रो लेतीं है पर लड़के उस रुलाई को रोक लेते हैं। लड़के गलत करतें हैं। न रोना बहादुरी नहीं है दिल टूटने पर। न रोने पर जिन धागों से आप दोनों के मन जुड़े थे उन में गुंजल पड़ जाती है और वो हमेशा दर्द देते रहतें हैं। लड़कियां और लड़कों, दोनों के लिए, रो लो। जी भर के रो लो। कोई कन्धा हो किसी दोस्त का या फिर अकेले तकिये में मुँह छुपा कर। जैसे भी चाहो पर रो लो। दुःख आंसू बन कर बाहर निकलना शुरू करता है। अपने अहं को अपनी ego को ताक पर रख दें । अगर अहंकार आड़े आ रहा है तो अकेले में रो लें। इस रोने पर कोई अंकुश न बांधें। रोना जब ख़तम हो तो चुपचाप बैठ जायें और साँस को पांच मिनिट देखें की आ रही है और जा रही है । दिल का टूटना भूचाल लाता है और आपको बार बार रोना आएगा। दुःख होगा सबसे प्यारी चीज़ खो जाने का। रो लो यार। तुम बहुत रोये बहुत दुःख हुआ ये उसे न बतायें जिसने दिल तोड़ा है। उसे जरा सा भी असर न होगा। न होगी उसे तुमसे सहानभूति न ही होगी गिल्ट फीलिंग। सब बेकार है इसलिए उसे तो बिलकुल न बताना। अगर ये दोनों बातें होतीं तो वो जाता ही क्यों ? उसे जब बताओगे तो वो और भाव खा जायेगा। "जब वी मेट" दिल बेवफाई से तिलमिला जाता है। गुस्सा ऐसा भरता है की सारे जहाँ में आग लगा दें। अपने प्रेमी को गोली मार दें। याद रहे की आपका उससे दिल का कनेक्शन था और दिल में ही हो रहा है दुःख। इस दुःख का अंत आपके दिल में ही है। इसका सलूशन बाहर नहीं अपने अंदर ही है। तो चलाइये गोली अपने मन में और उसका क़त्ल कर दें उसी दिल में जो कभी उसका था । दीजिये जी भर के गाली। जला दें उसकी तस्वीर और उसकी यादें । बन जायें "जब वी मेट" की करीना कपूर । अपने आप को न रोकें। मन आपका है और खयाल भी आपके हैं। कमरा बंद करें और अच्छी तरह मारें थप्पड़ और घूंसे तकियों को ये समझ कर की उसको मार रहे हैं । मारें जब तक दिल को तसल्ली न हो । फाड़ दें तस्वीरों को, जला दें यादों को। यदि यादों के सहारे बैठे रहे तो इसका मतलब है की उम्मीद के सहारे बैठे हैं और आप को समझना पड़ेगा की उम्मीद को ही ख़तम करना है वार्ना उम्मीद दुःख देती रहेगी। इस तकिये की मार पीट से आपका metabolism बढ़ जायेगा। एक मिनट रुकें और फिर पांच मिनट करैं सहज प्राणायाम। "सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाये" दिल का टूटना असल में एक तनाव (Stress) है, मन का, जो मस्तिष्क को और सारे शरीर पर असर करता है। हिंदुस्तानी चम्पी तेल मालिश एक अचूक इलाज है तनाव को कम करने का। हर रोज मालिश करें सर की और सारे बदन की। इससे खून का प्रवाह तेज़ होता है और शरीर की ऊर्जा का सकारात्मक तरीके से उपयोग होता है। जैसे बिल्ली अपना मुँह फाड़ती है वैसे ही उबासी लें। मुँह फाड़ें और गिनती गिनें दस तक और छोड़ दें। उबासी अपने आप आएगी। सारे दिन बार बार करें। इससे तनाव ग्रस्त मस्तिष्क की नसें ढीली होतीं हैं। एक बार में कम से कम दस उबासी लें। "दिल पर `पत्थर रख कर मैंने मेकअप कर लिया। संया जी से आज मैंने ब्रेकअप कर लिया।" अपने दुःख को अपने पर हावी न होने दें । आगे बढ़ें। ये है बिंदास लोगों के लिए की अपने दोस्तों से मिले , पार्लर जायें और नए हेयर स्टाइल बनायें, नयी दोस्ती बनायें। घर की चार दीवारों में कैद बार बार अपने पर तरस न खाते रहें । व्हिस्की की बोतल से देवदास की तरह दोस्ती न करैं । अगर ये किया तो आप इस गम में और डूबते जायेंगे । चॉइस या चुनना आपके हाथ है । कई बार देवदास बनने में मज़ा भी है। मज़ा लेने के लिए थोड़ी देर देवदास भी बन लें पर ये आपकी मंज़िल नहीं है । ज़रूरी है गम से बाहर निकलना। शराब, पॉट और ड्रग्स गम को और गहरा कर देते हैं। इससे जितना दूर रह सकतें हैं दूर हो जायें । पतझड़ के बाद जैसे बसंत आती है वैसे ही जिंदगी भी अपने रंग बदलती है । थोड़ा प्रक्टिकली (व्यहवारिक ) सोचें । आप की ज़िन्दगी में फिर बहार आएगी । कहीं किसी मोड़ पर कोई आपका इंतज़ार कर रहा है !!! धैर्य रखें थोड़ा। हंसो और मुस्कुराओ वाह भाई क्या सुझाव दिया है ? ठीक सोच रहें हैं। यहां तो रोना आ रहा है हमेशा और आप कह रहें हैं की "हंसो और मुस्कुराओ " "कैसे भाई???" एक पेंसिल लें और उसे होंठों के बीच हॉरिजॉन्टल रखें। (Make a photo) जब आप हँसते हैं तो अपने आप होंठ फैलते हैं। हम अब अपने होटों को जबरदस्ती फहला रहे हैं। ऐसा करने से मस्तिष्क की शिरायें टेंशन को मुक्त करती हैं। दो से पांच मिनट इस एक्सरसाइज़ को करैं। मन शांत होने लगेगा। हंसी,ख़ुशी को व्यक्त करती है और इसके पीछे हैं शरीर के केमिकल्स और मस्तिष्क के स्नायु। आप बिना पेंसिल के भी अपने होंठ फहला सकतें हैं करीब दस सेकण्ड्स के लिए। आपको उबासी भी आएगी। ये सबसे अच्छी चीज़ है इसका मतलब है की आप रिलैक्स हो रहे हैं । दुःख का आधार मन और शरीर मे है। इस प्रक्रिया को कहतें हैं reverse engineering . मन जैसे शरीर को प्रभावित करता है ऐसे ही हम शरीर का उपयोग कर रहें हैं मन को प्रभावित करने को। प्रकृति का सहारा लें। रोज़ सुबह नंगे पाऊं घांस, रेत, मट्टी पर चलें। हम ये कभी भी नहीं करते हैं। ऐसा करने से शरीर की अर्थिंग होती है जो मन और शरीर को ऊर्जा देती है। बगीचे मे टहलें। देखें हरी घास, फूलों के गहरे रंग, भँवरे, तितलिआं और कहैं "WOW" वाह वाह । सूर्यास्त और सूर्योदय देखें और कहैं "शुक्रिया भगवान्" रात मे चाँद सितारे देखें और फिर कहैं "शक्रिया भगवन इस ख़ूबसूरत संसार के लिए " बहती हुई हवा पेड़ों के पत्तों से बात करती है। उसकी सरसराहट सुने, चिड़ियों का कलरव सुने। आप का मन अशांत है पर सारा संसार भगवान् ने परफेक्ट बनाया है। इस संसार को, चाहे मन न भी चाहे पर फिर भी मन से सराहना करें। मन को इस परफेक्ट संसार से जोड़ें। प्रकृति या भगवान् कुछ भी ऐसा नहीं करता है जिससे आप खुश या दुखी होऐं। दुःख और सुख आपके कनेक्शन हैं दूसरों से।

  🚩🪴 कहानिया🪴🚩 "आये हैं समझाने लोग "  By वनिता कासनियां पंजाब लोग आएंगे आपको समझाने मगर वो न समझेंगे की दुःख के अलग अलग लेवल्स होतें है। किसी को थोड़ा किसी को ज्यादा और कई लोगों का गम ऐसा होता है की दिखाना बंद हो जाता है , चेतना सुन्न हो जाती है। समझने और सोचने की शक्ति ही ख़तम हो जाती है पर समझना तो पड़ेगा ही इसीलिए ये टाइटल "आये हैं समझने लोग " । दिल को सँभालने के लिए हम तीन लेवल्स पर बात करेंगे । कुछ लोग पहले लेवल से ठीक होना शुरू हो जाएंगे । कुछ को दूसरे की भी ज़रूरत पड़ेगी और कुछ ऐसे इश्क के मारे होंगे जिन्हें तीसरे की भी जरूरत पड़ेगी। । शारीरिक स्तर पर (Physical level ) मानसिक स्तर पर (Psychological level ) आध्यात्मिक स्तर पर (Spiritual level ) 1. शारीरिक स्तर (Physical level ) रोना- धोना टूटे हुए दिल में बसा होता है ढेर सारा गुस्सा, कुंठायें और न ख़तम होने वाला रोना।। शरीर का नियम है की नकारात्मक को अपने आप बाहर फेंकता है। रोना शरीर का एक्सप्रेशन है दिल में बसे नेगेटिव को बाहर फेंकने का। रुलाई अपने आप आती है उसे न रोकें उसे आने दें। लड़कियां रो लेतीं है प

 नौ प्रकार की भक्ति केसे करें?हिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्त्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है।नवधा भक्ति का उल्लेख हमारे ग्रंथों में २ बार किया गया है। इसका पहला वर्णन विष्णु पुराण में आता है जो सतयुग में भगवान के नरसिंह अवतार से सम्बंधित है। इसमें हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद का एक वार्तालाप है जिसमें प्रह्लाद ने अपने पिता को प्रभु की नौ प्रकार की भक्ति के विषय में बताया है। जिसके विधिवत पालन से भगवान का साक्षात्कार किया जा सकता है। प्रह्लाद कहते हैं -Byवनिता कासनियां पंजाबश्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥अर्थात: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ये नौ प्रकार की भक्ति कहलाती है।श्रवण: भगवान की कथा और महत्त्व को पूरी श्रद्धा से सुनना।कीर्तन: भगवान के अनंत गुणों का अपने मुख से उच्चारण करते हुए कीर्तन करना।स्मरण: सदैव प्रभु का स्मरण करना।पाद-सेवन: प्रभु के चरणों में स्वयं को अर्पण कर देना।अर्चन: शास्त्रों में वर्णित पवित्र सामग्री से प्रभु का पूजन करना।वंदन: आठ प्रहर ईश्वर की वंदना करना।दास्य: भगवान को स्वामी और स्वयं को उनका दास समझना।सख्य: ईश्वर को ही अपना सर्वोच्च और प्रिय मित्र समझना।आत्मनिवेदन: अपनी स्वतंत्रता त्याग कर स्वयं को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित कर देना।इन नौ में भी प्रह्लाद ने श्रवण, कीर्तन और समरण को श्रेष्ठ बताया है और इन तीनों में भी श्रवण को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कहा है।अलग-अलग युगों में नौ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जो इन विभिन्न भक्ति की पराकाष्ठा के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। ये हैं:श्रवण: परीक्षितकीर्तन: शुकदेवस्मरण: प्रह्लादपाद सेवन: माता लक्ष्मीअर्चन: पृथुवंदन: अक्रूरदास्य: हनुमानसख्य: अर्जुनआत्मनिवेदन: दैत्यराज बलिआधुनिक युग में नवधा भक्ति को प्रसिद्ध करने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को जाता है। उन्होंने श्री रामचरितमानस के अरण्य कांड में प्रभु श्रीराम द्वारा इस नवधा भक्ति का उल्लेख किया है। रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम शबरी से मिलते हैं तो वो कहती हैं कि मैं नीच कुल में जन्म लेने वाली आपकी भक्ति की अधिकारिणी कैसे बन सकती हूँ।तब श्रीराम कहते हैं कि "हे भामिनि सुनो! मैं केवल एक ही भक्ति का सम्बन्ध मानता हूँ। जाति-पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, कुटुंब, गुण और चतुरता, इन नौ गुणों के होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य ऐसा लगता है जैसे जलहीन बादल। इसके बाद श्रीराम शबरी को नौ प्रकार की भक्ति के विषय में बताते हैं जो तुलसीदास जी ने छः दोहों में समाहित किया है।नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ। तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा-प्रसंग में प्रेम।गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥तीसरी भक्ति है अभिमानरहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति है कि कपट छोड़कर मेरे गुणसमूहों का गान करे।मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥मेरे (राम) मन्त्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास - ये पांचवी भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना।सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥सातवीं भक्ति है जगत भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को ना देखना।नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित बर्ताव करना, ह्रदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का ना होना। इन नवों में से जिनके एक भी होती है, वह स्त्री-पुरुष, जड़-चेतन कोई भी हो -सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥भामिनि! मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वही आज तेरे लिए सुलभ हो गयी है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमजय श्रीराम। 

 नौ प्रकार की भक्ति केसे करें? हिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्त्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है। नवधा भक्ति का उल्लेख हमारे ग्रंथों में २ बार किया गया है। इसका पहला वर्णन विष्णु पुराण में आता है जो सतयुग में भगवान के नरसिंह अवतार से सम्बंधित है। इसमें हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद का एक वार्तालाप है जिसमें प्रह्लाद ने अपने पिता को प्रभु की नौ प्रकार की भक्ति के विषय में बताया है। जिसके विधिवत पालन से भगवान का साक्षात्कार किया जा सकता है। प्रह्लाद कहते हैं - Byवनिता कासनियां पंजाब श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ अर्थात: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ये नौ प्रकार की भक्ति कहलाती है। श्रवण: भगवान की कथा और महत्त्व को पूरी श्रद्धा से

कार्तिक मास में सुख समृद्धि के लिये कुछ नियमों का पालन करें ।By वनिता कासनियां पंजाब1 ) जो कार्तिक मास प्राप्त हुआ देख पराये अन्न का सर्वथा त्याग करता है। (बाहर का कुछ नही खाता) उसे अतिक्रच्छ नामक यज्ञ करने का फल मिलता है।2) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को कमल के फूल चढाता है। वह 1 करोड जन्म के पाप से मुक्त हो जाता है ।3) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को तुलसी चढाता है। वह हर 1 पत्ते पर 1 हीरा दान करने का फल पाता है।4) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज गीता का एक अध्याय पडता है। वह कभी यमराज का मुख नही देखता ।5) जो मनुष्य कार्तिक मास मे शालिग्राम शिला का दान करता है। उसे सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल मिलता है ।6) कार्तिक मास मे जो व्यक्ति पुरे मास पलाश की पत्तल मे भोजन करता है। वह विष्णु लोक को जाता है ।7) कार्तिक मास मे तुलसी पीपल और विष्णु की रोज पुजा करनी चाहिए ।8) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु के मंदिर की परिक्रमा करता है। उसे पग पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।9 ) इस जन्म मे जो पाप होते है। वह सब कार्तिक मास मे दीपदान करने से नष्ट हो जाता है।10) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज नाम जप करते है। उनपर भगवान विष्णु प्रसन्न रहते है ।11) जो मनुष्य कार्तिक मास मे तुलसी ,पीपल या आवले का वृक्षारोपण करते है वह पेड जबतक प्रथ्वी पर रहते है। लगाने वाला तब तक वैकुण्ठ मे वास करता है।।।

कार्तिक मास में सुख समृद्धि के लिये कुछ नियमों का पालन करें । By वनिता कासनियां पंजाब 1 ) जो कार्तिक मास प्राप्त हुआ देख पराये अन्न का सर्वथा त्याग करता है। (बाहर का कुछ नही खाता) उसे अतिक्रच्छ नामक यज्ञ करने का फल मिलता है। 2) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को कमल के फूल चढाता है। वह 1 करोड जन्म के पाप से मुक्त हो जाता है । 3) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को तुलसी चढाता है। वह हर 1 पत्ते पर 1 हीरा दान करने का फल पाता है। 4) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज गीता का एक अध्याय पडता है। वह कभी यमराज का मुख नही देखता । 5) जो मनुष्य कार्तिक मास मे शालिग्राम शिला का दान करता है। उसे सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल मिलता है । 6) कार्तिक मास मे जो व्यक्ति पुरे मास पलाश की पत्तल मे भोजन करता है। वह विष्णु लोक को जाता है । 7) कार्तिक मास मे तुलसी पीपल और विष्णु की रोज पुजा करनी चाहिए । 8) जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु के मंदिर की परिक्रमा करता है। उसे पग पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। 9 ) इस जन्म मे जो पाप होते है। वह सब कार्तिक मास मे दीपदान करने से नष्ट हो जाता

Sharad Purnima 2022 Date: शरद पूर्णिमा कब है? जानें इस दिन क्यों खाते हैं चांद की रोशनी में रखी खीर By #वनिता #कासनियां #पंजाब🌺🙏🙏🌺 Sharad Purnima 2022 Date: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. #facebook #twitter जानें, शरद पूर्णिमा की चमत्कारी खीर खाने से क्या होते हैं फायदे Sharad Purnima 2022 Date: हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा खास बताया गया है. #हिंदू #धर्म #ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर #चंद्रमा #पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. इस साल शरद पूर्णिमा 09 अक्टूबर को पड़ रही है. शरद पूर्णिमा की तिथि अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा तिथि रविवार, 09 अक्टूबर 2022 को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी. पूर्णिमा तिथि अगले दिन सोमवार, 10 अक्टूबर 2022 को सुबह 02 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी. #शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर सवार होकर धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों की समस्याओं को दूर करने के लिए वरदान देती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. #Vnita शरद पूर्णिमा पर खीर का सेवन मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों में रखी खीर का सेवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. इस खीर को चर्म रोग से परेशान लोगों के लिए भी अच्छा बताया जाता है. ये खीर आंखों से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को भी बहुत लाभ पहुंचाती है. इसके अलावा भी इसे कई मायनों में खास माना जाता है. अपार #धन पाने के लिए उपाय रात के समय मां लक्ष्मी के सामने #घी का #दीपक जलाएं. उन्हें #गुलाब के #फूलों की माला अर्पित करें. उन्हें सफेद मिठाई और सुगंध भी अर्पित करें. "ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः" का जाप करें. मां लक्ष्मी जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. बस उनते सच्चे मन से अपनी बात पहुंचानी होगी और जब धरती पर साक्षात आएं तो इससे पावन घड़ी और क्या हो सकती है. #शरद_पूर्णिमा #राजस्थान #हरियाणा #संगरिया वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद_ पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और #आश्विन_नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद_पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम वर्ष भर इस #पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा_मनसो_जात:।वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। #शरद_पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी #खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस #खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। #शरद_पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर #अमृत_की_वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में #शरद_पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में #शरद_पूर्णिमा को #कुमार_पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। #शरद_पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है। #घटता_बढ़ता_चांद यहाँ हर कोई #उस चांद सा है.. जो कभी बढ़ रहा है तो कभी घट रहा है.. वो कभी #पूर्णिमा की रात सा रोशनी बिखेर रहा है.. तो कभी #अमावस की रात में एक अंधेरे सा हो रहा है.. यहाँ हर किसी की यही फितरत है.. हम खुद भी इसका अपवाद नही है.. हम सब ऐसे ही बने हैं ऐसे ही बनाये गए हैं.. यकीं न हो तो पल भर को सोचिए की आखिर क्यूँ हर सुबह जब हम सोकर उठते हैं.. तो हम पिछली सुबह से अलग होते हैं.. #कभी_कमजोर.. तो कभी_ताकतवर महसूस करते हैं.. मसला बस इतना सा है, की #हम_हर_दिन दूसरों को बस पूर्णिमा का चांद सा देखना चाहते हैं.. इस सच से बेखबर की घटना/बढ़ना हम सभी की फितरत है.. इसमें कुछ भी नया नही है.. हम खुद भी अक्सर पूर्णिमा के चाँद से अमावस का चांद होने की राह पर होते हैं.. हम खुद भी कमजोर हो रहे होते हैं.. बस हम इसे देख नही पाते.. अपनी नासमझी में हम शायद कुदरत के इस सबसे बड़े कायदे को ही भूल बैठे हैं.. अगर इस तरह घटना बढ़ना ही हमारी फितरत है.. तो आखिर सुकून क्या है.. #अपने_अहंकार, #अपनी_ज़िद्द से कहीँ दूर किसी कोने में बैठकर.. खुद में और दूसरों में घटते बढ़ते इस चांद को देखना.. उसे महसूस करना.. इस कुदरत को समझना. उसके कायदों को समझना..#फिर_हल्के_से_मुस्कुराना.. बस यही सुकून है..🙏🙏 (ये पोस्ट वनिता कासनियां पंजाब किसी ने भेजा था l) ॐ। 9 अक्तूबर २०२२ रविवार #शरद #पूर्णिमा है , #अश्विन मास की शरद पूर्णिमा बेहद खास होती है क्योंकि साल में एक बार आने वाली ये पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. इसे कुछ लोग #रास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. क्योंकि #श्रीकृष्ण ने महारास किया था। कहा जाता है कि इस रात में #खीर को खुले आसमान में चंद्रमा के प्रकाश में रखा जाता है और उसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है. बता दें इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर गुरुवार आज है. सनातन परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. मान्यता है की शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है. जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होती है. इस रात लोग मान्यता के अनुसार खुले में खीर बनाकर रखते हैं और सुबह उसे सब के बीच में बांटा जाता है. यही कारण है कि इस रात लोग अपनी छतों पर या चंद्रमा के आगे खीर बनाकर रखते हैं और प्रसाद के रूप में खीर को बांटा जाता है। बड़ी ही उत्तम तिथि है शरद पूर्णिमा. इसे #कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है. कहते हैं ये दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां #लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. इस दिन प्रेमावतार भगवान श्रीकृष्ण, धन की देवी मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अलग वरदान प्राप्त किए जाते है शरद पूर्णिमा का महत्व - शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है. - इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और #सोलह कलाओं से युक्त होता है. - इस दिन चन्द्रमा से #अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है. - #प्रेम और #कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था. - इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन #सेहत, अपार #प्रेम और खूब सारा #धन पाया जा सकता है - पर #प्रयोगों के लिए कुछ सावधानियों और नियमों के पालन की आवश्यकता है. इस बार शरद पूर्णिमा 05 अक्टूबर को होगी शरद पूर्णिमा पर यदि आप कोई महाप्रयोग कर रहे हैं तो पहले इस तिथि के नियमों और सावधानियों के बारे में जान लेना जरूरी है. शरद पूर्णिमा #व्रत विधि - पूर्णिमा के दिन सुबह में #इष्ट #देव का पूजन करना चाहिए. - #इन्द्र और #महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. - #गरीब बे #सहारा को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. - लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. - रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. - #गरीबों में खीर आदि #दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है. शरद पूर्णिमा की सावधानियां - इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें. - उपवास ना भी रखें तो भी इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए. - इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें, चमकदार सफेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा. अगर आप शरद पूर्णिमा का पूर्ण शुभ फल पाना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए इन नियमों को ध्यान में जरूर रखिएगा। #शरद_पूर्णिमा के दिन इस #व्रत_कथा को पढ़ने और सुनने से #मां_लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न। #शरद_पूर्णिमा ९ अक्टूबर को है. शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा को कौमुदी यानी मूनलाइट में खीर को रखा जाता है. क्योंकि चंद्रमा की किरणों से अमृत की बारिश होती है. इस दिन शाम को मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मान्यता है कि सच्चे मन ने पूजा- अराधना करने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं. #शरद_पूर्णिमा_की_पौराणिक_कथा #शरद_पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है. उसने हिंदू धर्म की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे को छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया. . #शरद_पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

  Sharad Purnima 2022 Date: शरद पूर्णिमा कब है? जानें इस दिन क्यों खाते हैं चांद की रोशनी में रखी खीर By #वनिता #कासनियां #पंजाब🌺🙏🙏🌺 Sharad Purnima 2022 Date: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. #facebook #twitter जानें, शरद पूर्णिमा की चमत्कारी खीर खाने से क्या होते हैं फायदे Sharad Purnima 2022 Date: हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा खास बताया गया है. #हिंदू #धर्म #ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर #चंद्रमा #पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. इस साल शरद पूर्णिमा 09 अक्टूबर को पड़ रही है. शरद पूर्णिमा की तिथि अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी श