उड़द दाल: स्वाद और सेहत का खजाना By वनिता कासनियां पंजाब आयुर्वेद में उड़द को धान्यवीर, बीजरत्न, वृषांकुर, बलाढ्य, मासल आदि नामों से जाना जाता है, वहीं अरबी व फ़ारसी में इसे माषा/माष कहा जाता है। अब नामों में ही उड़द की महिमा छिपी है अर्थात आयुर्वेद में इसे मासवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, दुग्धवर्धक, वाजीकारक, तृप्तिजनक, पौष्टिक, स्वादिष्ट व स्निग्ध तथा परिणाम शूल, अर्दित और बवासीर में लाभकारी कहा गया है। हृदय के लिए उत्तम और थकान को दूर करने वाली है।लेकिन फिर उड़द का उपभोग दालों में अरहर/तूर, चना, मसूर और मूंग के बाद पांचवें नम्बर पर क्यों है? असल में उड़द वात, मेद (वसा), कफ को बढ़ाने वाली, रक्तरोग कारक और पचने में भारी होती है। भावप्रकाश संहिता के अनुसार उड़द, दही, मछली और बैंगन, ये चारों कफ और पित्त को बढ़ाने वाले हैं।शास्त्रों में उड़द को सभी दालों में निकृष्ट कहा गया है लेकिन उन्हीं शास्त्रों में जई (ओट/Oats) को भी अधम कहा गया है जिसके (जई/Oat) तो इस समय बड़े गुणगान हो रहे हैं।असल में आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। लोग आधे ज्ञान के आधार पर निष्कर्ष निकालने लगते हैं जो कभी सही नहीं हो सकता। आष्टाङ्गहृदय के अनुसार एक साल पुराने अन्न अपनी गुरुता त्याग देते हैं और मृदु/हल्के हो जाते हैं।साधारण नियम है कि जो खाद्यान्न पकने में देर लगाते हैं, वे पचने में देर लगाते हैं अर्थात भारी/गुरु होते हैं।ऐसे में घी अथवा तेल में भून लेने से वे अपनी गुरूता को त्याग कर जल्दी पक जाते हैं। छिलका उतार देने से भी गुरूता कम हो जाती है। बिना घी-तेल के भुने (रोस्टेड) हुए अन्न लघु हो जाते हैं।भावप्रकाश पूर्वखण्ड में लिखा है कि उड़द की दाल को हींग के साथ पकाने से उसमे स्वाद बढ़ जाता है और वह लघु भी हो जाती है। भारतीय द्रव्यगुण विज्ञान के अनुसार उड़द के दोषों को नष्ट करने के लिए इसमें हींग मिलाना आवश्यक है। यूनानी चिकित्सा के मतानुसार माष/उड़द के दर्प का नाश करने के लिए कालीमिर्च, अदरक और हींग का उपयोग करना चाहिए।आखिर में इतना कि उड़द की दाल का आनन्द लेने के लिए आपका पाचन दुरुस्त होना चाहिए।यह मेरी पसंदीदा रेसिपी है। हालांकि मैं छिलका वाली उड़द कम पसंद करता हूं लेकिन मैंने इसमें आधी छिलका सहित और आधी बिना छिलका डाल का प्रयोग किया है। कहने की जरूरत नहीं कि यह पहले घी में भुनी हुई है और पर्याप्त मात्रा में हींग, अदरक और कालीमिर्च के साथ लहसुन व पंचफोड़न (जीरा, मेथी, अजवाइन, कलौंजी/मंगरैल और सौंफ) का भी प्रयोग किया है। मगर हल्दी का उपयोग दाल के बजाए चावलों में किया है जिसके साथ चावलों में कुछ भीगने के बाद उबाले और फिर हल्का तले हुए चने भी डाले हैं जिससे कारण चावलों में भी हींग और जीरा का प्रयोग किया है। चावलों में आधी मात्रा सामान्य बासमती और आधी मात्रा पुराने शालिचावल का प्रयोग किया है।इति,बेहतर जीवन और उत्तम स्वास्थ्य की अशेष शुभकामनाओं के साथ, सवाल पूछने के लिए बहुत बहुत आभार और उत्तर को पूरा पढ़ने के लिए कोटिशः धन्यवाद! 🙏💐मैं आयुर्वेद की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लाने के अपने अभियान में यहां पर उपस्थित हूं। आप भी मेरे साथ इस मुहिम में, अभियान में, खोज में, शामिल हो सकते हैं बस थोड़ी से जतन से - पोस्ट को अपवोट और शेयर करके और साथ ही एक कॉमेंट करके। इससे यह ज्ञान ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सकेगा और लोगों की मदद हो सकेगी। आप चाहें तो अपनी अलग कोई इस तरह की पहल कर सकते हैं। लेकिन कुछ तो करिए! 🙏💐स्वास्थ्य घरेलू नुस्खेजाने से पहले मैं इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए स्वस्थ और निरोगी जीवन की शुभकामनाओं के साथ, बहुत-बहुत धन्यवाद कहती हु ! 🙏मैं एक छोटा सा फेवर माँगना चाहती हूँ कि आपको मेरा लेख पसंद आया है तो इसे अपने दोस्तों के साथ और संबंधित मंचों पर साझा करें ताकि औरों को भी लाभ हो सके; दूसरों की मदद करें! हमारी साझी विरासत आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के सहभागी बनें।पाक विधिआपकी हर प्रतिक्रिया मुझे उस तरह के लेख लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगी जो आपको अच्छे तर्कों के साथ यथेष्ठ जानकारी वाले बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद करते हैं।अगर आपने इस लेख को पसंद किया है, तो कृपया मुझे कॉमेंट में बताएं...अगर नहीं भी पसंद किया है तो भी कॉमेंट में बताएं। अगर आपके पास कोई प्रश्न है? मुझे अपने विचार नीचे टिप्पणियों में सुनने दें! यकीन मानिए कॉमेंट करने से बहुत फर्क पड़ता है।शुभकामनाएं। 🙏💐
आयुर्वेद में उड़द को धान्यवीर, बीजरत्न, वृषांकुर, बलाढ्य, मासल आदि नामों से जाना जाता है, वहीं अरबी व फ़ारसी में इसे माषा/माष कहा जाता है। अब नामों में ही उड़द की महिमा छिपी है अर्थात आयुर्वेद में इसे मासवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, दुग्धवर्धक, वाजीकारक, तृप्तिजनक, पौष्टिक, स्वादिष्ट व स्निग्ध तथा परिणाम शूल, अर्दित और बवासीर में लाभकारी कहा गया है। हृदय के लिए उत्तम और थकान को दूर करने वाली है।
लेकिन फिर उड़द का उपभोग दालों में अरहर/तूर, चना, मसूर और मूंग के बाद पांचवें नम्बर पर क्यों है? असल में उड़द वात, मेद (वसा), कफ को बढ़ाने वाली, रक्तरोग कारक और पचने में भारी होती है। भावप्रकाश संहिता के अनुसार उड़द, दही, मछली और बैंगन, ये चारों कफ और पित्त को बढ़ाने वाले हैं।
शास्त्रों में उड़द को सभी दालों में निकृष्ट कहा गया है लेकिन उन्हीं शास्त्रों में जई (ओट/Oats) को भी अधम कहा गया है जिसके (जई/Oat) तो इस समय बड़े गुणगान हो रहे हैं।
असल में आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। लोग आधे ज्ञान के आधार पर निष्कर्ष निकालने लगते हैं जो कभी सही नहीं हो सकता। आष्टाङ्गहृदय के अनुसार एक साल पुराने अन्न अपनी गुरुता त्याग देते हैं और मृदु/हल्के हो जाते हैं।
साधारण नियम है कि जो खाद्यान्न पकने में देर लगाते हैं, वे पचने में देर लगाते हैं अर्थात भारी/गुरु होते हैं।
ऐसे में घी अथवा तेल में भून लेने से वे अपनी गुरूता को त्याग कर जल्दी पक जाते हैं। छिलका उतार देने से भी गुरूता कम हो जाती है। बिना घी-तेल के भुने (रोस्टेड) हुए अन्न लघु हो जाते हैं।
भावप्रकाश पूर्वखण्ड में लिखा है कि उड़द की दाल को हींग के साथ पकाने से उसमे स्वाद बढ़ जाता है और वह लघु भी हो जाती है। भारतीय द्रव्यगुण विज्ञान के अनुसार उड़द के दोषों को नष्ट करने के लिए इसमें हींग मिलाना आवश्यक है। यूनानी चिकित्सा के मतानुसार माष/उड़द के दर्प का नाश करने के लिए कालीमिर्च, अदरक और हींग का उपयोग करना चाहिए।
आखिर में इतना कि उड़द की दाल का आनन्द लेने के लिए आपका पाचन दुरुस्त होना चाहिए।
यह मेरी पसंदीदा रेसिपी है। हालांकि मैं छिलका वाली उड़द कम पसंद करता हूं लेकिन मैंने इसमें आधी छिलका सहित और आधी बिना छिलका डाल का प्रयोग किया है। कहने की जरूरत नहीं कि यह पहले घी में भुनी हुई है और पर्याप्त मात्रा में हींग, अदरक और कालीमिर्च के साथ लहसुन व पंचफोड़न (जीरा, मेथी, अजवाइन, कलौंजी/मंगरैल और सौंफ) का भी प्रयोग किया है। मगर हल्दी का उपयोग दाल के बजाए चावलों में किया है जिसके साथ चावलों में कुछ भीगने के बाद उबाले और फिर हल्का तले हुए चने भी डाले हैं जिससे कारण चावलों में भी हींग और जीरा का प्रयोग किया है। चावलों में आधी मात्रा सामान्य बासमती और आधी मात्रा पुराने शालिचावल का प्रयोग किया है।
इति,
बेहतर जीवन और उत्तम स्वास्थ्य की अशेष शुभकामनाओं के साथ, सवाल पूछने के लिए बहुत बहुत आभार और उत्तर को पूरा पढ़ने के लिए कोटिशः धन्यवाद! 🙏💐
मैं आयुर्वेद की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लाने के अपने अभियान में यहां पर उपस्थित हूं। आप भी मेरे साथ इस मुहिम में, अभियान में, खोज में, शामिल हो सकते हैं बस थोड़ी से जतन से - पोस्ट को अपवोट और शेयर करके और साथ ही एक कॉमेंट करके। इससे यह ज्ञान ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सकेगा और लोगों की मदद हो सकेगी। आप चाहें तो अपनी अलग कोई इस तरह की पहल कर सकते हैं। लेकिन कुछ तो करिए! 🙏💐
जाने से पहले मैं इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए स्वस्थ और निरोगी जीवन की शुभकामनाओं के साथ, बहुत-बहुत धन्यवाद कहती हु ! 🙏
मैं एक छोटा सा फेवर माँगना चाहती हूँ कि आपको मेरा लेख पसंद आया है तो इसे अपने दोस्तों के साथ और संबंधित मंचों पर साझा करें ताकि औरों को भी लाभ हो सके; दूसरों की मदद करें! हमारी
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बनें।
आपकी हर प्रतिक्रिया मुझे उस तरह के लेख लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगी जो आपको अच्छे तर्कों के साथ यथेष्ठ जानकारी वाले बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद करते हैं।
अगर आपने इस लेख को पसंद किया है, तो कृपया मुझे कॉमेंट में बताएं...अगर नहीं भी पसंद किया है तो भी कॉमेंट में बताएं। अगर आपके पास कोई प्रश्न है? मुझे अपने विचार नीचे टिप्पणियों में सुनने दें! यकीन मानिए कॉमेंट करने से बहुत फर्क पड़ता है।
शुभकामनाएं। 🙏💐
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